मुंबई : महाराष्ट्र में शिवसेना के ठाकरे गुट और बाबासाहब डा.अम्बेडकर के प्रपौत्र प्रकाश अम्बेडकर के वंचित बहुजन आघाड़ी में युती की चर्चा राजनीतिक व सामाजिक हलकों में चल रही है. दो दिन पहले ही उद्धव ठाकरे और प्रकाश अम्बेडकर की एक संयुक्त प्रेस वार्ता हुई. इसके बाद ही इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया. वैसे यह चर्चा पिछले कुछ महिनों से चल रही थी. लेकीन शिवसेना के ठाकरे गुट की तरफ से अधिकारीक तौर पर कोई बात सामने नहीं आ रही थी. केवल मात्र प्रकाश अम्बेडकर और उनके कार्यकर्ताओं की तरफ से ही सोशल मीडिया में इस पर चर्चा की जा रही थी.
अब यह लगभग तय हुआ है कि शिवसेना के ठाकरे गुट और प्रकाश अम्बेडकर के वंचित बहुजन आघाडी में आने वाले चुनाव में गठबंधन देखने को मिल सकता है. लेकीन इसमें और बहोत कुछ होना बाकी है. इसलिए कई राजनीतिक एवं सामाजिक जानकार इसके अटकलों के बारे में बोलते हुए दिखाई दे रहे है. ये अटकलें कौनसी है, क्या है और उसके मायने क्या है? इन सभी पर आज विस्तार से बात करेंगे.
सबसे पहले, अगर यह गठबंधन होता है तो वह स्वागत करने वाली बात होगी. क्योंकि जो दो परस्पर विरोधी दल/संगठन आज एक समान शत्रु को परास्त करने के लिए एक साथ आये है, महाराष्ट्र के लोग उनका स्वागत करेंगे और उनके पीछे अपनी सारी शक्ति झौंक देंगे. मीडिया से लेकर सामान्य लोगों ने इस सम्भावित गठबंधन को ‘शिवशक्ति-भीमशक्ति’ का नाम दिया है. लेकीन क्या महाराष्ट्र में इस प्रकार का प्रयोग इसके पहले नहीं हुआ? क्या प्रकाश अम्बेडकर ने शिवसेना के अलावा अन्य लोगों के साथ गठबंधन बनाकर काम करने का प्रयास नहीं किया? इन सवालों के जवाब ‘हाँ’ ही है. शिवसेना ने भी ऐसे कई प्रयास किए, जिन्हें समय-समय पर ‘शिवशक्ति-भीमशक्ति’ ही नाम दिया गया. उनका क्या हुआ? वह क्यों विफल हुए? इसके साथ ही अपने 40 साल की राजनीती में प्रकाश अम्बेडकर ने किए हुए प्रयासों का क्या हुआ? वह विफल क्यों हुए? इन पर बात होनी जरुरी है.
प्रकाश अम्बेडकर ने पिछले 40 साल में अपनी खुद की कोई अलग पहचान नहीं बनाई. देश भर में ना सही, महाराष्ट्र में भी वे आज भी डा.बाबासाहब अम्बेडकर के प्रपौत्र के नाम से ही जाने जाते है. राजनीतिक पहचान और सफलता न मिलने के अनेक कारण हो सकते है, पर राज्य में संगठन शक्ति निर्माण करने के लिए तो उन्हें किसी ने रोका नहीं था. एक सामान्य परिवार से आने वाले वामन मेश्राम ने संगठन शक्ति बनाकर ही देश और दुनिया में अपनी पहचान निर्माण की.
प्रकाश अम्बेडकर के साथ तो डा.बाबासाहब अम्बेडकर का नाम जुडा है. लेकीन उनमें संगठन बनाने का कौशल्य एवं नेतृत्व करने की क्षमता न होने के कारण वे न राजनीती में सफल हुए न ही सामाजिक आंदोलन चलाने में. और यही वजह रही कि वे महाराष्ट्र तथा देश में अपनी अलग पहचान नहीं बना पाये. उनके साथ जो लोग पिछले 40 सालों में रहे, वे सभी लोग उन पर आरोप लगाकर उन्हें छोड़कर चले गए, पुर्व विधायक हरीदास भदे (अकोला पश्चिम), पुर्व विधायक बलीराम सिरस्कार (बालापूर), श्रावण इंगळे(पुर्व जि.प. अध्यक्ष), पुर्व विधायक मखराम पवार (बोरगाव मंजू), पुर्व विधायक रामदास बोडखे, पुर्व विधायक दशरथ भांडे ऐसे कई नाम गिनाये जा सकते है.
आरोप ये की प्रकाश अम्बेडकर भाजपा के लिए काम करते है. केवल इतना ही नहीं बल्कि आरोप ऐसे भी लगे कि उन्हें अपने ‘अम्बेडकर’ होने पर बहोत ज्यादा अहंभाव है. उन्हें ऐसा लगता है कि ‘अम्बेडकर’ होने की वजह से मुझे ही सब समझ में आता है और वे अन्य लोगों को अपमानित करते है. इससे नाराज़ होकर भी कईयों ने उनका साथ छोड़ा. प्रकाश अम्बेडकर के पुराने साथी पद्मश्री लक्ष्मण माने की शिवसेना के ठाकरे गुट और वंचित बहुजन आघाडी की संयुक्त प्रेस वार्ता पर प्रतिक्रिया आई है. पदम्श्री लक्ष्मण माने कहते है कि, उनका प्रकाश अम्बेडकर पर विश्वास नहीं. वे अंदरुनी रुप से RSS-BJP के साथ मिले हुए है. माने आगे कहते है कि, प्रकाश अम्बेडकर जिनके साथ जायेंगे उनका सत्यानाश होगा, यह बात उद्धव ठाकरें ने समझ लेनी चाहिए.
एड.प्रकाश अम्बेडकर पर उनके ही साथ रहने वाले कई सारें लोगों ने जो कई आरोप लगाये है, उनमें एक बहोत ही गम्भीर आरोप ये है कि वे अंदरुनी तौर पर RSS-BJP के साथ मिले हुए है. क्या यह केवल आरोप है या उसके पीछे कोई सच्चाई भी है, इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते है. इसके लिए दो उदाहरण देना चाहेंगे. बहोत पुरानी बातों में हम नहीं जायेंगे. पहला उदाहरण - 1 जनवरी 2018 में भीमा-कोरेगांव में हुए दंगों के बाद महाराष्ट्र का माहौल खराब होने जा रहा था. लोगों में फडणवीस, एकबोटे और भिडे इन तीन ब्राह्मणों के विरोध में गुस्सा बढ़ रहा था.
ऐसे में प्रकाश अम्बेडकर फडणवीस के बचाव में आये. उन्होंने फडणवीस के इशारे पर आंदोलन करने का नायक किया. बीबीसी मराठी के फेसबुक लाईव में खुद प्रकाश अम्बेडकर ने ये बात कही थी. उन्होंने आगे ये भी कहा था कि जांच कमिटी के सामने वे सारे सबुत देंगे और सबको नंगा करेंगे. लेकीन उन्होंने जांच कमिटी के सामने फडणवीस या RSS-BJP के विरोध वाला एक भी सबुत नहीं दिया. बल्कि ऐसा काम किया जिससे जांच ही बंद होने की सम्भावना थी. प्रकाश अम्बेडकर ने किसी को नंगा करने का तो काम नहीं किया, लेकीन भाजपा और फडणवीस को जरुर बचाने का काम किया. जिसके फल स्वरुप उन्हें अकोला जिला परिषद जीतने के लिए RSS-BJP ने दो बार मदत की थी, यह है दुसरा उदाहरण.
महाराष्ट्र के अकोला जिले में जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों के लिए अक्टूबर 2022 में चुनाव हो रहे थे. इस चुनाव में प्रकाश अम्बेडकर के वंचित बहुजन आघाडी के सामने काँग्रेस, राष्ट्रवादी, शिवसेना की महाविकास आघाडी थी. ऐसे में वंचित बहुजन आघाडी का चुनाव जीतना सम्भव नहीं था. उन्हें यह चुनाव जीतने के लिए भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने मदद की और उनकी मदद से प्रकाश अम्बेडकर अकोला जिले में जिला परिषद का केवल अध्यक्ष बनाने में कामयाब नहीं हुए, बल्कि उपाध्यक्ष पद भी उन्हीं के पास आया है. और यह कोई पहली बार नहीं हुआ कि प्रकाश अम्बेडकर को RSS-BJP ने मदत की है. जिला परिषद के उसी चुनाव में पिछली बार भी RSS-BJP ने प्रकाश अम्बेडकर का समर्थन किया था. इसलिए अब RSS-BJP का प्रकाश अम्बेडकर के लिए का प्यार किसी से छुपा नहीं है. इन दो उदाहरणों से ये सिद्ध होता है कि प्रकाश अम्बेडकर जाहिर तौर पर RSS-BJP का विरोध जरुर करते है, पर अंदरुनी तौर पर वह उनके समर्थन में ही है.
अमेरीका के अब्राहम लिंकन कहते है कि राजनीती में दोस्त वहीं होते है, जिनका समान दुश्मन होता है. इस वजह से उद्धव ठाकरे ने प्रकाश अम्बेडकर को साथ लेने का फैसला किया है. मगर प्रकाश अम्बेडकर की हक़ीकत तो कुछ और ही है. यह बात भले ही आज उद्धव ठाकरे नहीं जानते, मगर काँग्रेस व राष्ट्रवादी काँग्रेस के नेता भलिभांति जानते है और शायद यही वजह है कि वे प्रकाश अम्बेडकर को साथ लेने के लिए राज़ी नहीं है. काँग्रेस व राष्ट्रवादी काँग्रेस ने शिवसेना को भी तब साथ लिया जब उन्होंने देखा कि शिवसेना पुरी तरह से भाजपा से अलग हो चुकी है. अगर वह अलग होने का केवल मात्र दिखावा करते तो शायद महाराष्ट्र में यह महाविकास आघाड़ी नहीं बनती. अभी तक महाविकास आघाडी के तीनों प्रमुख दलों में प्रकाश अम्बेडकर को लेकर कोई आम सहमती नहीं बनी है.
इसको लेकर कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि RSS-BJP ने ही प्रकाश अम्बेडकर को उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन करने के लिए भेजा है. राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे दो वजह बताते है. पहली वजह महाविकास आघाड़ी में फूट डालना, उसे कमजोर करना, उनके मतों का विभाजन करना, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा और दुसरी वजह शिवसेना को कमज़ोर करना.
शिनसेना को कमज़ोर करने के लिए ही RSS-BJP ने एकनाथ शिंदे के माध्यम से शिवसेना में फूट डाली और शिवसेना के 50 विधायक उद्धव ठाकरे से अलग हुए. नेता भले ही अलग हुए हो, पर वोटर अभी भी उद्धव ठाकरे के साथ है, ऐसा मानकर ही उद्धव ठाकरे को महाविकास आघाड़ी से बाहर करने की निती पर भाजपा फिलहाल काम करती हुई दिखाई दे रही है. 2019 में हुए महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव की बात करें तो भाजपा के बाद राष्ट्रवादी काँग्रेस को सबसे ज्यादा वोट शेअर मिला था. इस हिसाब से महाविकास आघाडी में राष्ट्रवादी शिवसेना का ‘बड़ा भाई’ है.
भाजपा को जहां डाले गए मतो में से 25.25% वोट मिले थे, तो वही राष्ट्रवादी काँग्रेस को 16.71%, शिवसेना को 16.41% और काँग्रेस को 15.87% वोट मिले थे. इस प्रकार से महाविकास आघाडी की कुल जमा 49.02% वोट शेअर होती है. शिवसेना में एकनाथ शिंदे के विभाजन के बाद शिवसेना के 6% वोट शिंदे के साथ जाते है तो भी राष्ट्रवादी और काँग्रेस के वोट उद्धव ठाकरे को मिलेंगे, तो भी महाविकास आघाड़ी के पास 39% वोट होंगे. 2019 के विधान सभा में भाजपा को 25.25% वोट मिले थे. उसमें अगर शिंदे गुट के 6% वोट मिला दिए जाये तो भी यह आंकड़ा 31% होता है, जो महाविकास आघाड़ी से कम ही होगा. इसलिए महाविकास आघाड़ी के मतों में विभाजन करना भाजपा के लिए जरुरी है और प्रकाश अम्बेडकर के माध्यम से RSS-BJP ऐसा करने का प्रयास कर रही है.
बात करें एड.प्रकाश अम्बेडकर की तो उन्हें 2019 के लोक सभा में 41 लाख 32 हजार वोट मिले थे. सभी मीडिया चैनल्स एवं अख़बारों ने यही ख़बरें छापी थी कि प्रकाश अम्बेडकर की वजह से काँग्रेस-राष्ट्रवादी का नुकसान और भाजपा-शिवसेना को फायदा. प्रकाश अम्बेडकर को 2019 की लोकसभा में मतों की संख्या 2014 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में राज ठाकरे के मनसे को मिले हुए मतों से ज्यादा थे. 2019 के लोक सभा के बाद उसी साल अक्टूबर में हुए विधान सभा चुनाव में प्रकाश अम्बेडकर के मतों का ग्राफ तेज़ी से नीचे आ गया. उन्हें तब 24 लाख वोट मिले. तो सवाल है कि प्रकाश अम्बेडकर को 2019 लोक सभा में इतने वोट मिले कैसे? और उसके बाद के विधान सभा चुनावों में उनके वोट घटे कैसे?
भाजपा विरोधी मतों का विभाजन करने के लिए ही RSS-BJP ने प्रकाश अम्बेडकर को मीडिया मैनेजमेंट करके प्रोजेक्ट करने का काम किया था. इसके लिए उन्होंने भीमा-कोरेगांव के दंगों के विरोध में प्रकाश अम्बेडकर का नेतृत्व मीडिया के जरीये खड़ा करने का प्रयास किया. और ऐसा भ्रम लोगों में निर्माण करने की कोशिश की कि प्रकाश अम्बेडकर ही बहुजनों की लड़ाई लड़ रहे है. 2019 के लोक सभा चुनावों में भाजपा विरोधी मतों के विभाजन के बाद प्रकाश अम्बेडकर और उनके कार्यकर्ता हवा में गए थे. भाजपा ने सोचा उन्हें जमीन पर लाना जरुरी है, इसलिए प्रकाश अम्बेडकर को मीडिया में जो प्रोजेक्शन लोक सभा चुनाव से पहले मिल रहा था, वह विधान सभा चुनाव से पहले नहीं मिला. यह बात खुद प्रकाश अम्बेडकर के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर लिख रहे थे. इस बार भी मीडिया मैनेजमेंट करके RSS-BJP प्रकाश अम्बेडकर को भाजपा विरोधी के रुप में प्रोजेक्ट कर रहे है, ताकि उद्धव ठाकरे उन्हें अपने साथ ले और महाविकास आघाड़ी में टकराव होकर वह बिखर जाये और इन सभी का फायदा भाजपा को मिले.
कथित ‘शिवशक्ति-भीमशक्ति’ की उस प्रेस वार्ता में उद्धव ठाकरें ने आने वाले चुनाव में सीटों के बांटवारें को लेकर कोई बात नहीं की. पत्रकारों के सवालों पर कहा की सीटों को लेकर हम बाद में तय करने वाले है. किसी भी राजनीतिक गठबंधन में ‘सीटों का बंटबारा’ ही सबसे महत्वपुर्ण फैक्टर होता है. एक ऐसा फैक्टर जो गठबंधन को तोड़ भी सकता है. भारतीय राजनीती में इसके दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते है कि एक सीट के लिए भी गठबंधन टूट जाते है, टूट गए है. और अगर उद्धव ठाकरे व प्रकाश अम्बेडकर के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कोई वार्ता नहीं हुई है तो उनका गठबंधन हुआ है, ऐसा नहीं माना जा सकता. लेकीन भाजपा समर्थित मीडिया तो गठबंधन होने का प्रचार कर रहा है. इसके पीछे एक बड़े षडयंत्र की बू आ रही है. उद्धव ठाकरे ने इसे तुरंत भांप लेना चाहिए.
उद्धव ठाकरे का समर्थन तीन कारणों की वजह से बढ़ा हुआ है. पहला, मुख्यमंत्री के रुप में उन्होंने जो ढाई साल काम किया और कोरोना महामारी के समय में अन्य राज्यों की तुलना में काफी अच्छा व्यवस्थापन किया, इस वजह से उनके प्रशंसकों और समर्थकों में बढ़ोतरी हुई नज़र आई. दुसरा कारण ये की महाविकास आघाड़ी की वजह से काँग्रेस-राष्ट्रवादी के वोटर और समर्थकों में उद्धव ठाकरे को लेकर समर्थन बढ़ा है. और तिसरा कारण ये कि भाजपा ने जिस तरीके से एकनाथ शिंदे के माध्यम से उद्धव ठाकरे के साथ गद्दारी करवाई और उसके बाद उद्धव ठाकरे को जिस तरह से मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, उसकी वजह से भी महाराष्ट्र की आम जनता की सहानुभुती उद्धव ठाकरे को मिली है. इस सहानुभूती को मतों में बदलने के लिए देर नहीं होगी. अब देखना बस यह है कि उद्धव ठाकरे इन सभी बातों को कैसे संभालते है.