बीते कई सालों से भारत में ईवीएम को लेकर सियासी दलों और जनता में संदेह है. सियासी दलों के नेता लगातार बैलेट पर चुनाव संपन्न कराने की मांग करते आ रहे है.
पूना : बीते कई सालों से भारत में ईवीएम को लेकर सियासी दलों और जनता में संदेह है. सियासी दलों के नेता लगातार बैलेट पर चुनाव संपन्न कराने की मांग करते आ रहे है. लेकिन चुनाव आयोग यह कह कर उनकी मांग को खारिज कर रहा है कि ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता या धांधली नहीं की जा सकती. इस बीच एक बहोत बड़ी खबर सामने आई है. वह यह है कि ब्राझील में ईवीएम को लेकर लाखों लोग सड़कों पर उतर आए है. इससे ईवीएम का मुद्दा भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में भी गरमाया हुआ है. यह खबर ऐसे समय आई है जब भारत में वामन मेश्राम ईवीएम भंडाफोड़ राष्ट्रव्यापी परिवर्तन यात्रा निकालने जा रहे है.
दरअसल, पिछले साल हुए आम चुनावों के नतीजे आने के बाद ब्राझील में ईवीएम का मामला शुरु हुआ. लुला डा सिव्ला तिसरी बार ब्राझील के राष्ट्रपती बनने के बाद विपक्ष के नेता जैर बोल्सोनारो ने चुनाव में धांधली का बड़ा आरोप लगाते हुए, चुनाव को रद्द करने की मांग की. इस मांग का समर्थन करते हुए उनके करोड़ों समर्थकों ने ब्राझील की सुप्रीम कोर्ट, संसद और राष्ट्रपती भवन तक मार्च किया और उसे अपने हाथों में लिया. यह कोई पहली घटना नहीं थी. अमेरिका में जो बाइडेन के चुनाव जीतने के बाद ट्रंप के समर्थकों ने भी कैपिटल हिल पर मार्च किया था. उसके बाद श्रीलंका और अब ब्राझील में भी ऐसा ही चित्र देखने को मिल रहा है. संसद, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपती भवन और इन जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का घेराव क्या अब जनता के आंदोलनों का एक नया पैटर्न बन गया है?
ब्राझील की अर्थव्यवस्था भारत जैसे विकसनशील देशों की तरह है. वहां पर चुनाव में ईवीएम का चलन साल 1996 से चला आ रहा है. तभी से उस पर आशंकाएं जताई जा रही है. पिछले साल अक्टूबर माह में हुए आम चुनाव में लुला डा सिल्वा की बड़ी जीत के बाद विपक्ष सकते में आ गया. ऐसा नहीं है कि जैर बोलसोनारो ने ईवीएम और ब्राझील की चुनाव प्रणाली पर पहली बार आरोप लगाये है. उन्होंने कई बार इसके बारे में लोगों जागृत करने का भी काम किया है. इतना ही नहीं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे को लेकर कानुनी लड़ाई लड़ी है. अब तो उन्होंने भारत के वीवीपैट जैसी तकनीक अपनाने की भी सुचनाएं दी है. उनका कहना है कि वोट फिज़िकली गिनते आने चाहिए और वह गिनती लोगों के सामने होनी चाहिए. जब सुप्रीम कोर्ट में भी बोल्सोनारो की कोई सुनवाई नहीं हुई तब उनके करोड़ों समर्थकों ने संसद, सुप्रीम कोर्ट तथा राष्ट्रपती भवन घेरने के बाद एक बार ईवीएम का मुद्दा लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गया.
ब्राझील में इस्तेमाल की जानी वाली ईवीएम पर बीबीसी के दो पत्रकार जुलियाना ग्राग्नानी और जेक हॉर्टन ने एक स्टोरी लिखी है. जिसमें उन्होंने ब्राझील की ईवीएम में कोई धांधली नहीं हो सकती, इस बात पर जोर दिया है. उन्होंने ऐसे सबूत भी पेश किए है जिससे ये साबित हो सकता है कि ब्राझील में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम वाकई में सही है और उससे वोटों की चोरी नहीं की जा सकती. लेकिन आम जनता के मन में चुनावी धांधली को लेकर कई सारे सवाल है और उन्होंने ब्राझील में हुए चुनाव की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े कर दिए है.
इसलिए वहां के सुप्रीम कोर्ट की ये जिम्मेदारी थी कि उन्होंने उनकी ईवीएम को युनाईटेड नेशन्स के इंटरनेशनल इलेक्शन ऑब्ज़र्वर के सामने रखना चाहिए था. युनाईटेड नेशन्स के टेक्नीकल एक्सपर्ट्स से वोटींग मशीनों को चेक करवाना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और जिसकी वजह से ब्राझील में लोगों ने करोड़ों की संख्या में इकठ्ठा आकर संसद, सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रपती भवन घेर लिया था. करोड़ों लोगों की तीव्र भावनाओं को ध्यान में रखकर सरकार ने इंटरनेशनल इलेक्शन ऑब्ज़र्वर को युनाईटेड नेशन्स से कहकर बुलाना चाहिए था. ये काम सरकार ही कर सकती है. जब की उन्होंने ऐसा नहीं किया, इससे भी ब्राझील की सरकार पर चुनावी धांधली के आरोप लगे है, जो स्वाभाविक भी है.
इस पुरे मसले पर भारत सरकार की ओर से बहोत जल्द प्रतिक्रिया दी गई. केंद्र की आरएसएस संचालित भाजपा सरकार ये जानती है की मामला ईवीएम का है और यदि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया नहीं दी होती तो ये मुद्दा भारत में भी बड़े चर्चा का विषय बनता और शायद उसका खामियांज़ा भाजपा को आने वाले लोक सभा चुनाव में भुगतना पड़ता. इस बात की खबरदारी भारत की ब्राह्मण-बनिया मीडिया ने भी ली है. उन्होंने केवल इतनी ही ख़बरें छापी की ब्राझील के लोग सड़कों पर उतर आये. पर उसका कारण क्या था? क्यों ब्राझील के करोड़ों लोगों का ईवीएम से होने वाले चुनाव पर विश्वास नहीं है? इन बातों पर ब्राह्मण-बनिया मीडिया ने चुप्पी साध ली. वह भी भारतीयों को ईवीएम के मुद्दे पर कोई अतिरिक्त जानकारी देने के लिए तैयार नहीं है.
यदि हम बीबीसी के पत्रकारों की बातों को सही मान ले कि ब्राझील में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम में कोई धांधली नहीं हो सकती, तो फिर सवाल उठता है कि केंद्र की आरएसएस संचालित भाजपा सरकार ब्राझील की ईवीएम को भारत में लाकर उसका इस्तेमाल क्यों नहीं करती? क्या उन्हें इस बात का ड़र है कि उन ईवीएम से वह चुनाव में घोटाला नहीं कर सकते और उन्हें हार का सामना करना होगा? सत्ताधारी भाजपा को एक और ड़र है कि यदि ब्राझील की ईवीएम से निष्पक्ष चुनाव होते है तो भारतीय ईवीएम से निष्पक्ष चुनाव नहीं होते, यह बात अपने आप ही सिद्ध हो जायेगी.
भारत में भी ईवीएम पर जोरदार चर्चा हो रही है. उसके दो कारण है. पहला, केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से आरवीएम यानी रिमोट वोटिंग मशीन को चुनाव प्रणाली में लाया जा रहा है. जिसका सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया है और दुसरा कारण ये है कि भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा की ओर से ‘ईवीएम भंडाफोड़ देशव्यापी परिवर्तन यात्रा पार्ट 2’ निकाली जा रही है. अभी हम पहले कारण पर विस्तार से बात करेंगे. 16 जनवरी के दिन केंद्रीय चुनाव आयोग ने एक बैठक बुलाई थी. जिसमें केंद्रीय चुनाव आयोग भारत की सभी राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पार्टियों को ईवीएम से अवगत कराना चाहता था.
लेकिन विपक्षी दलों ने उसका विरोध किया, जिसकी वजह से वह बैठक नहीं हुई. विपक्षी दलों के विरोध का कारण ये है कि चुनाव आयोग ने ‘प्रवासी मजदुरों’ की व्याख्या सही नहीं की है और उनकी कितनी संख्या है, उसे भी स्पष्ट नहीं किया है. उनका मानना है कि ईवीएम का उपयोग कहीं एक विधान सभा के चुनाव के लिए किया जा सकता है, मगर आम चुनाव में इसका उपयोग करना सही है. इस पर लोगों की तरफ से भी सवाल उठाये जा रहे है कि जब पोस्टल बैलेट है, तो फिर इस आरवीएम की क्या जरुरत है? क्या पोस्टल बैलेट के मतों को भी चुनाव आयोग लुटना चाहता है?
26 जनवरी 2023 से वामन मेश्राम के नेतृत्व में भारत मुक्ति मोर्चा एवं बहुजन क्रांति मोर्चा के बैनरतले ‘ईवीएम भंडाफोड़ देशव्यापी परिवर्तन यात्रा पार्ट 2’ निकल रही है. यह यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक जायेगी. जिसके जरिए वामन मेश्राम 670 जिलों में ईवीएम का मुद्दा लेकर जायेंगे और लोगों को जागृत करने का काम करेंगे. वामन मेश्राम के ही नेतृत्व में ईवीएम का भंडाफोड़ करने वाली पहली देशव्यापी परिवर्तन यात्रा साल 2019 में जम्मू से कन्याकुमारी के लिए निकली थी. यात्रा केरल में पहुँचने ही वाली थी कि केंद्र की आरएसएस- बीजेपी की सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया था. जिसकी वजह से वामन मेश्राम की परिवर्तन यात्रा अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकी. इस बार वह कन्याकुमारी से ही दूसरे परिवर्तन यात्रा की शुरुआत करने वाले है. बता दें की पहली देशव्यापी परिवर्तन यात्रा केवल 6 महीने के लिए थी. अब यह यात्रा पुरे एक साल तक चलेगी. 26 जनवरी 2023 से लेकर 26 जनवरी 2024 तक वह ईवीएम से होने वाले वोटों की चोरी और उससे लोकतंत्र की हत्या कैसे हो रही है इसके बारे में मूलनिवासी बहुजनों को जागृत करने का काम करेगी.
वामन मेश्राम के नेतृत्व में निकलने वाली इस देशव्यापी परिवर्तन यात्रा को उन्होंने एक और नाम दिया है, ‘शासनकर्ती जमात बनो.’ यह बाबासाहब डा.अम्बेडकर का घोषवाक्य लेकर वामन मेश्राम देश के 670 जिलों में जाएंगे और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए लोगों को आवाहन करेंगे की हमें इस देश की शासनकर्ती जमात बननी है, लेकिन ईवीएम की वजह से हम नहीं बन पा रहे है. इसलिए ईवीएम का बंदोबस्त करने के लिए यह ‘ईवीएम भंडाफोड़ देशव्यापी परिवर्तन यात्रा पार्ट 2’ निकाली जा रही है. इस परिवर्तन यात्रा का परिणाम यह हो सकता है कि जिस तरह से चुनावी धांधली के विरोध में ब्राझील के करोड़ों लोग सड़कों पर आ गए, वैसे ही अगर 2024 के लोक सभा चुनाव में वर्तमान केंद्र सरकार ने गड़बड़ियां की तो भारत में भी करोड़ों लोग सड़कों पर उतर जायेंगे, क्योंकि भारत की जनता भी अब चुनावी धांधली को सहने वाली नहीं है.
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