नई दिल्ली : बीएसएनएल के रिटायर्ड कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. मंगलवार को रिटायर्ड कर्मचारी पेंशन रिवीजन की मांग के लिए देशभर में सड़कों पर उतर आए हैं. उनका कहना है कि इसमें 2017 से कोई संशोधन नहीं हुआ है. उन्होंने पेंशन को सातवें वेतन आयोग के अनुसार रिवाइज करने की मांग की. साथ ही उन्होंने सरकार पर धोखा देने का आरोप भी लगाया. रिटायर्ड कर्मचारियों का कहना है कि जब 2000 में बीएसएनएल बनी थी तब एग्रीमेंट हुआ था कि कर्मचारियों की पेंशन केंद्र सरकार देगी. पेंशन तो दी गई, लेकिन अन्य केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर 7वें वेतन आयोग की गाइडलाइन के अनुसार इसमें रिवीजन नहीं हुआ. 2017 से यह मामला लंबित है.
ऑल इंडिया रिटायर्ड बीएसएनएल एक्जीक्यूटिव वेलफेयर एसोसिएशन (यूपी-ईस्ट) के सर्किल सेक्रेटरी पल्लब बोस के अनुसार, मंगलवार को देशभर में बीएसएनएल के पेंशनर्स ने धरना प्रदर्शन किया. बुधवार को भी यह जारी रहेगा. पेंशन मुद्दे पर दो दिवसीय धरना प्रदर्शन का आह्वान किया गया था. उन्होंने कहा कि जब दूरंसचार विभाग (डीओटी) से बीएसएनएल को बनाया गया तो सरकार के साथ कर्मचारियों का एक अनुबंध हुआ था. इसके तहत तय हुआ था कि जिन बीएसएनएल/एमटीएनएल कर्मचारियों ने गवर्नमेंट पेंशन स्कीम चुनी है, उन्हें सेंट्रल एम्प्लॉयीज की तर्ज पर सभी बेनिफिट मिलेंगे. यानी केंद्र सरकार पेंशन देगी.
पल्लब बोस के अनुसार, सीसीए के जरिये बीएसएनएल कर्मचारियों की पेंशन सेंट्रल गवर्नमेंट से ही मिल रही है. मेडिकल फेसिलिटी भी सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम के मार्फत मिलती है. 2017 में 7वां केंद्रीय वेतन आयोग आया. उसमें बीएसएनएल/एमटीएनएल कर्मचारियों का वेतन रिवाइज नहीं किया गया. सरकार का पक्ष था- चूंकि बीएसएनएल कर्मियों का पे रिवीजन नहीं हो रहा है. लिहाजा पेंशनर्स का भी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि जब इन कर्मचारियों पर केंद्र सरकार के सभी नियम लागू होते हैं, तो फिर उनकी पेंशन 7वें वेतन आयोग के अनुसार क्यों रिवाइज नहीं की जा रही है. बोस ने कहा कि सरकार बार-बार कहती है कि बीएसएनएल नुकसान में चल रही है. लिहाजा, पेंशन में संशोधन नहीं किया जा सकता है. जबकि सच यह है कि करार के तहत डीओटी से बीएसएनएल में गए कर्मचारियों का सरकारी कंपनी के मुनाफा और घाटे से कोई लेना देना नहीं है. उन्हें केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर सभी बेनिफिट दिए जाने हैं. इसी बात को लेकर प्रदर्शन किया जा रहा है.
बोस के अनुसार, इसे लेकर अंतिम बैठक 17 अक्टूबर 2022 में हुई थी. मीटिंग में डीओटी सेक्रेटरी ने कर्मचारियों की मांगों को मान भी लिया. इसमें सभी मांगों को डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर को भेजने का आश्वासन दिया गया. कर्मचारियों की मांग थी कि जब उनका बीएसएनएल से मतलब नहीं है तो उन्हें इससे डीलिंक किया जाए. इस बारे में आदेश भी जारी करने के लिए कहा गया था. वहीं से यह विवाद खत्म हो जाना था. उसके लिए भी सहमति बन गई. केंद्रीय संचार मंत्री ने इस मामले पर रिपोर्ट देने को भी कहा था. कर्मचारियों को बताया गया कि रिपोर्ट भेज दी गई है. मंत्रालय से कोई जवाब नहीं आया है. बाद में पता चला कि पूरी रिपोर्ट उलटी भेजी गई है. इसमें कहा गया कि इन कर्मचारियों को न 7वां वेतन आयोग दिया जा सकता है, न डीलिंक किया जा सकता है. इसी के बाद घेराव का फैसला लिया गया.
पूर्व डिप्टी जनरल मैनेजर (फाइनेंस) राकेश कुमार के अनुसार, इस पूरे मामले में गफलत बनाकर रखी गई. कर्मचारियों को बताया गया कुछ और किया गया कुछ. 17-18 जनवरी को देशव्यापी प्रदर्शन का फैसला इन्हीं बातों के मद्देनजर लिया गया. साल 2000 में बीएसएनएल बनने पर कर्मचारियों के साथ हुए एग्रीमेंट को भुलाया जा रहा है. एक जनवरी 2017 से पेंशन रिवीजन का मसला लंबित है. अगर इन मांगों को नहीं माना गया तो आगे संचार भवन का घेराव किया जाएगा. इस बाबत सेक्रेटरी (डीओटी) को एक ज्ञापन सौंपा गया है.