नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आठ नवंबर 2016 को 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को अचानक चलन से बाहर करने की घोषणा के बाद से नोटबंदी के फैसले को लेकर कई ऐसे खबरें सामने आई जो केंद्र सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करती रही है. अब एक बार फिर से आरटीआई से सामने आया है कि नोटबंदी लागू करने के समय तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत से नई करेंसी छापी गई थी. हैरानी की बात है कि ये दस्तखत उनके गवर्नर बनने से 17 महीने पहले ही ले लिए गए थे.
दरअसल, एक आरटीआई का जवाब देते हुए करंसी नोट प्रेस नासिक ने बताया है कि तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नए 500 रूपए के नोट अप्रैल 2015 से लेकर 2016 के बीच छापे गए थे. ये नोटबंदी की घोषणा होने से लगभग 19 महीने पहले हुआ था. ध्यान देने वाली बात है कि उर्जित पटेल 5 सितंबर 2016 को आरबीआई के नए गवर्नर के तौर पर नियुक्त किए गए थे. यानी उर्जित पटेल के आरबीआई गवर्नर नियुक्त होने से 17 महीने पहले ही उनके दस्तखत वाले 500 के नोट छाप लिए गए थे. ये काफी बड़ी अनियमितता है.
इस पूरे मामले पर रिटायर्ड आईपीएस विजय शंकर सिंह लिखा, ‘करेंसी नोट प्रेस, नासिक ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नए डिजाइन के 500 मूल्य के नोट पीएम द्वारा 8/11/2016 को नोटबंदी की घोषणा के 19 महीने पहले 15/04/2015 को छापे गए थे. जबकि उर्जित पटेल आरबीआई के गवर्नर 5/10/2016 में नियुक्त किए गए थे. स्पष्ट है कि, उर्जित पटेल के आरबीआई गवर्नर नियुक्त होने के 17 महीने पहले ही उनके हस्ताक्षर वाले 500 के नोट छाप लिए गए थे. इतनी बड़ी अनियमितता कैसे हुई? डा.मनमोहन सिंह ने नोटबंदी ऐसे ही नहीं एक संगठित लूट करार दिया था.
मोदी सरकार के नोटबंदी निर्णय का मुख्य उद्देश्य देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाने के अलावा टेरर फंडिंग को खत्म करना था. जिस डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की थी, उसकी 6 साल में ही हवा निकल गई है. पिछले महीनों दैनिक भास्कर ने खुलासा किया था कि आरबीआई के रिकॉर्ड से 9 लाख 21 हजार करोड़ रुपए की नई नोट गायब हैं. इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि पिछले 6 साल में कैश तेज़ी से बढ़ गया है. नोटबंदी के पहले देशभर में था कुल 18 लाख करोड़ का कैश, अब बढ़कर 31 लाख करोड का हो गया है.
मोदी सरकार ने कैशलेस इकोनामी का वादा करके आनन-फानन में नोटबंदी कर दी. सरकार के इस फैसले के बाद नकदी से जुड़ी बेहिसाब समस्याएं पैदा हुईं और अनगिनत छोटे और मध्यम व्यवसाय बंद हो गए. जिससे लाखों लोगों को अपना रोजगार खोना पड़ा. करोड़ों लोगों को लेन-देन में दिक्कत हुई, लाखों लोगों की शादी ब्याह रजिस्ट्री अटक गई, हजारों निम्न और मध्यम उद्योग इकाइयां बर्बाद हो गई. सैकड़ों लोगों की बैंकों की लाइन में खड़े खड़े मौत होने से उनके परिजनों की दुनिया उजड़ गई.
बड़ी नोट की वजह से कालाधन बढ़ता है, कहकर 500 और 1000 के नोटों को बंद करवाया और इसके बदले 2000 की नोट छपवाया. 3 साल बाद ही गुलाबी नोटों की छपाई बंद कर दी गई. 1680 करोड़ नई नोट यानी 9 लाख करोड़ की कीमत की ये नोट गायब हैं. अनुमान है कि इतनी बड़ी राशि अब कालाधन बन चुकी हैं. नोटबंदी के बाद की बड़ी बड़ी बातें अब पूरी तरह से झूठ साबित हो चुकी हैं.
नोटबंदी लागू करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भाइयों बहनों, मैंने सिर्फ़ देश से 50 दिन मांगे हैं. 30 दिसंबर तक मुझे मौक़ा दीजिए मेरे भाइयों बहनों. अगर 30 दिसंबर के बाद कोई कमी रह जाए, कोई मेरी ग़लती निकल जाए, कोई मेरा ग़लत इरादा निकल जाए, आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर..देश जो सज़ा करेगा वो सज़ा भुगतने को तैयार हूं.‘ नोटबंदी के बाद इस फैसले की कई कमियां सामने आती रहीं. लेकिन अब तक जो अनियमितता सामने आई है. सवाल यह है कि क्या इस अनियमितता के लिए प्रधानमंत्री ‘चौराहे पर आकर सज़ा भुगतने को तैयार हैं’?