नई दिल्ली : कोरोना महामारी के चलते 2020 की तुलना में 2021 में कम संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला और विश्व भर में सरकारें महामारी से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने और महंगाई पर रोक लगाने की कोशिशों के तहत महिलाओं एवं लड़कियों को गरीबी के नये स्तर, अधिक कामकाज और समय से पहले मृत्यु के अभूतपूर्व खतरे में डाल रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक गरीब परिवार की महिलाओं के सामने संकट और गंभीर होता जा रहा है. ऑक्सफैम रिपोर्ट की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है.
ऑक्सफैम की ‘द असाल्ट आफ आस्टेरिटी’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महामारी के चलते 2020 की तुलना में 2021 में कम संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला. महिलाओं को इन जरूरी सार्वजनिक सेवाओं में कटौती के परिणाम के रूप में शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का सामना करना पड़ा, क्योंकि वे उन पर ज्यादा निर्भर करती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी से उबरने की कोविड के बाद की राह महिलाओं एवं लड़कियों के जीवन की सुरक्षा की कीमत पर और उनके कठिन परिश्रम के बूते तैयार की जा रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सरकारों ने जलापूर्ति जैसी सार्वजनिक सेवाओं में कटौती की है, जिसका मतलब है कि विश्व भर में महिलाएं और लड़कियों को इसके लिए अधिक समय देना पड़ेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व भर में सरकारें महामारी से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने और महंगाई पर रोक लगाने की कोशिशों के तहत महिलाओं एवं लड़कियों को गरीबी के नए स्तर, अधिक कामकाज और समय से पहले मृत्यु के अभूतपूर्व खतरे में डाल रही है. इसमें कहा गया है, ‘महामारी के चलते 2020 की तुलना में 2021 में कम संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला.’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘महिलाओं को इन जरूरी सार्वजनिक सेवाओं में कटौती के परिणाम के रूप में शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का सामना करना पड़ा क्योंकि वे उन पर ज्यादा निर्भर करती हैं.
लैंगिक न्याय एवं अधिकार मामलों की आक्सफैम चीफ अमीना हेरसी ने कहा, ‘महामारी के बाद इससे उबरने की राह महिलाओं एवं लड़कियों के जीवन, कड़ी मेहनत और सुरक्षा की कीमत पर तैयार की जा रही है.’ उन्होंने कहा, ‘मितव्ययिता लैंगिक आधारित हिंसा का एक रूप है.’ उन्होंने कहा कि सरकारें सार्वजनिक सेवाओं में कटौती कर नुकसान पहुंचाना जारी रख सकती हैं, या वे उन लोगों पर कर लगा सकती है जो इसे वहन कर सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महिलाएं एवं लड़कियां स्वच्छ जल प्राप्त करने के लिए अधिक परेशानी का सामना कर रही हैं। इसके अभाव में हर साल उनमें से 8,00,000 की जान चली जाती है.’ इसमें कहा गया है कि वे अधिक हिंसा का सामना करती हैं, यहां तक कि हर 10 महिलाओं एवं लड़कियों में एक को बीते साल अपने करीबी व्यक्ति से यौन और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा.
गौरतलब है कि बीते साल नए शोध से पता चला है कि भारत में महिलाओं को कोरोना महामारी के दौरान पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक नुकसान हुआ है. पहले से ही महिलाएं लिंग आधारित असमानताओं का सामना करतीं हैं, उसके ऊपर कोरोना ने इन्हें आर्थिक रूप से गरीबी में धकेल दिया है. यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर बीना अग्रवाल ने शोध के माध्यम से पाया कि महिलाओं को कोविड लॉकडाउन के दौरान पुरुषों की तुलना में नौकरियों का अधिक नुकसान हुआ है.
घरेलू कामगारों के रूप में कार्यरत लोगों की बड़ी संख्या में काम पर रोक लगा दी गई थी, कई अपने गांवों में वापस चले गए और अधिकांश तब से वापस नहीं आए हैं क्योंकि वे आसानी से अब वहां नहीं रह सकते हैं। यहां तक कि जो महिलाएं रोजगार खोजने में कामयाब रही, या स्व-नियोजित श्रमिकों के रूप में अपने व्यापार को फिर से स्थापित किया उनकी पहले जैसी आय नहीं हो रही है. कई लोग कर्जदार हो गए हैं और समय के साथ, अपनी सीमित संपत्ति जैसे छोटे जानवर, गहने या यहां तक कि व्यापार के अपने उपकरण, जैसे कि गाड़ियां बेचने के लिए मजबूर हो गए हैं. संपत्ति के नुकसान ने उनके आर्थिक भविष्य को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया, यहां तक उन्हें भयंकर गरीबी में धकेल दिया है.
इसके अलावा, कोविड के दौरान घरों में भीड़ बढ़ने से घरेलू हिंसा में भी तेजी आई है, लेकिन कई महिलाएं मोबाइल फोन तक पहुंच नहीं होने के कारण अधिकारियों को इसकी सूचना नहीं दे सकी. शोध में यह भी पाया गया कि कोविड के कारण पुरुष मृत्यु दर ने विधवा महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जो आने-जाने पर रोक-टोक का सामना करती हैं और इस कारण अलगाव बढ़ गया है. यह शोध वर्ल्ड डेवलपमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.