नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आनन- फानन में अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाए जाने का मामला जहां तुल पकड़ता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने भी गोयल की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए है. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को फिर सुनवाई हुई. केंद्र ने नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी फाइल कोर्ट को सौंपी. इसे देखने के बाद बेंच ने कई सवाल पूछे. यह भी पूछा कि अरुण गोयल का नाम एक ही दिन में कैसे फाइनल हो गया?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पूछा कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए कानून मंत्री द्वारा प्रधानमंत्री की मंजूरी के लिए भेजे गए चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने के पीछे क्या मानदंड थे? पीठ ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि यह उचित होता अगर मामले की सुनवाई के दौरान नियुक्ति नहीं की जाती.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को सूचित किया था कि गोयल को गुरुवार को सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई थी और उनकी नियुक्ति को दो दिनों के भीतर पक्का किया गया था. आज भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि द्वारा पेश की गई फाइलों को देखने के बाद पीठ ने इस बात पर सवाल उठाए कि एक दिन के भीतर ही नियुक्ति क्यों की गई? पीठ ने वेंकटरमणि से यह भी पूछा कि एक व्यक्ति, जिसका कार्यकाल 6 वर्ष की अवधि का भी नहीं होगा उसे नियुक्त क्यों किया गया?
जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि 15 मई को पद खाली हुआ, ऐसे में सरकार ने इस पर नियुक्ति के लिए जल्दबाजी क्यों की? उसी दिन क्लीयरेंस, उसी दिन नोटिफिकेशन, उसी दिन मंजूरी. फाइल 24 घंटे भी नहीं घूमी. यह तो बिजली की गति से भी तेज हुआ. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो सभी बातों का जवाब देंगे, लेकिन अदालत उनको बोलने का मौका तो दें. जस्टिस ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि क्या व्यवस्था कायम है और प्रक्रिया ठीक काम कर रही है? डेटाबेस सार्वजनिक डोमेन में है और कोई भी इसे देख सकता है?
गुरुवार को केंद्र सरकार ने संविधान पीठ को अरुण गोयल की निर्वाचन आयुक्त पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित फाइल सौंपी. सरकार ने कहा कि नियुक्ति की ओरिजिनल फाइल की प्रतियां पांचों जजों को दी गई हैं. सुनवाई के दौरान पीठ ने नियुक्ति के तरीके पर भी सवाल उठाए. जस्टिस रस्तोगी ने इतनी तेजी से फाइल आगे बढ़ने और नियुक्ति करने पर सवाल खड़े किए. उन्होंने पूछा कि 24 घंटे के भीतर सारी जांच पड़ताल कैसे कर ली गई?
उधर गुरूवार को कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई लगभग सभी नियुक्तियां और उनके द्वारा लिए गए निर्णय परंपरा और संविधान की धज्जियां उड़ाकर किए गए. यह टिप्पणी उस दिन आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति जल्दबाज़ी में की गई थी. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा ने ट्विटर पर लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति बहुत हड़बड़ी में की गई थी.
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा था कि हाल ही में गोयल को वीआरएस दिलाया गया और फिर उनकी नियुक्ति की गई है, कहीं इस नियुक्ति में कोई झोल तो नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा था कि अगर पीएम के खिलाफ कुछ आरोप हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन पर एक्शन लेना है. अगर वो कमजोर होंगे तो वो एक्शन नहीं ले सकते. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जरूरत ऐसे चीफ इलेक्शन कमिश्नर की है जो यहां तक कि पीएम के खिलाफ भी एक्शन ले सकता हो. बेंच ने केंद्र सरकार के वकील से कहा था कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए.