संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र की चार एजेंसियों ने चेतावनी दी है की कोरोना महामारी की वजह से लोगों की नौकरियां जाने और खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने से एशिया में 35 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हो सकते हैं. बुधवार को जारी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि महामारी से करीब 1.9 अरब लोगों के लिए पौष्टिक भोजन जुटा पाना मुश्किल हो रहा है.
नवीनतम अनुमानों के मुताबिक, दुनिया में 68.8 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं और इनमें से आधे से ज्यादा लोग एशिया में हैं. रिपोर्ट 2019 के आंकड़ों पर आधारित है. लेकिन अनुमान है कि महामारी और लॉकडाउन के कारण 2020 में 14 करोड़ अन्य लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए. पिछले साल के अंत तक करीब 26.5 करोड़ लोग भोजन की कमी के गंभीर संकट का सामना कर रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन, यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कई स्थानों पर समस्या और गहरा गई है. महामारी का संकट और नौकरियां जाने से कई परिवारों को पर्याप्त खाना नहीं मिल पा रहा है. अमेरिका में भी विभिन्न संगठनों द्वारा भोजन पैकेट बांटे जाने के दौरान लोगों की लंबी कतारों से इसका अंदाजा मिल जाता है.
रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में महामारी के समय लॉकडाउन के कारण आपूर्ति श्रृंखला टूटने और परिवहन संबंधी दिक्कतों की वजह से जरूरतमंद लोगों तक अनाज पहुंचाने में समस्या आई. दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
इसमें कहा गया है कि एशिया में फल, सब्जियों और डेयरी उत्पादों की कीमतें बढ़ने से कम आय वाले परिवारों के लिए जरूरत की खाद्य वस्तुएं खरीदने में दिक्कतें आईं. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर में पिछले छह साल में खाद्य वस्तुओं की कीमतें सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गईं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी के फैलाव और क्षेत्र के अनेक हिस्सों में अच्छे रोज़गार वाले कामकाज के अभाव और खाद्य प्रणालियों व बाज़ारों में फैली अनिश्चितता के माहौल ने असमानता को और बढ़ाया है. परिणामस्वरूप, गरीब परिवारों को अपनी कम होती आय के मद्देनज़र और भी ज़्यादा सस्ती और कम पोषण वाली ख़ुराक़ों के इंतजाम के लिए मजबूर होना पड़ा है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में साल 2019 तक लगभग 35 करोड़ लोगों के कम पोषित होने का अनुमान था, जिनमें से 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 7 करोड़ 45 लाख बच्चे कम पोषण के कारण अपनी उम्र के अनुपात में बौने थे और लगभग 3 करोड़ 15 लाख बच्चे अपनी ऊंचाई के अनुपात में बहुत पतले व कमज़ोर थे. यूएन एजेंसियों ने सभी माताओं और बच्चों के लिए पौष्टिक आहार मुहैया कराने और अन्य ज़रूरी कारकों के समाधान निकालने लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाने का आह्वान किया है, जिसमें खाद्य, जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, सामाजिक संरक्षण और शिक्षा प्रणालियों के एक साथ रखा जाए.
बता दें कि बीते दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के एक अध्ययन में कहा गया था कि कोरोना महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के चलते 2030 तक 20 करोड़ 70 लाख और लोग घोर गरीबी की ओर जा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो दुनिया भर में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक अरब के पार हो जाएगी. इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र ने कोविड-19 से ग़रीबी और भुखमरी बढ़ने की आशंका जताई थी.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि कमजोर देशों में कोरोना संकट की वजह से आर्थिक एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण गरीबी बढ़ेगी, औसत आयु कम होगी, भुखमरी बढ़ेगी, शिक्षा की स्थिति खराब होगी और अधिक बच्चों की मौत होगी. उससे पहले जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक महामारी के पहले 12 महीनों में भुखमरी से लाखों बच्चों की जान जाने की आशंका जताई थी.
संयुक्त राष्ट्र ने अगाह किया था कि कोरोना वायरस और उससे निपटने के लिए लगे प्रतिबंधों के कारण कई समुदाय भुखमरी का सामना कर रहे हैं और एक महीने में 10,000 से अधिक बच्चों की जान जा रही है. जुलाई की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र ने चेताया था कि कोरोना वायरस महामारी इस साल करीब 13 करोड़ और लोगों को भुखमरी की ओर धकेल सकती है.
जून 2020 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट में कहा गया था कि कोरोना महामारी के कारण वैश्विक गरीबी दर में 22 वर्षों में पहली बार वृद्धि होगी. भारत की गरीब आबादी में एक करोड़ 20 लाख लोग और जुड़ जाएंगे, जो विश्व में सर्वाधिक है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने भी चेतावनी दी थी कि कोरोना संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं.