26 जनवरी 2023 को भारत में एक तरफ जहां 73वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा था, तो वही दुसरी ओर तमीलनाडु में पुलिस प्रशासन संविधान विरोधी कार्य कर रहा था.
वामन मेश्राम ने अपने विडीयो में कन्याकुमारी के पुलिस की गैरसंवैधानिक हरकतों के बारे में जानकारी दी और शाम 5 बजे के बाद देशव्यापी जेल भरो आंदेलन करने के निर्देश कार्यकर्ताओं को दिए. वामन मेश्राम के आदेश पर अमल करते हुए लोगों ने उसकी तैयारी शुरु की और शाम 5 बजे तक देश भर के लाखों कार्यकर्ता जेल में जाने के लिए तैयार हो गए. जिलों और तहसीलों के पुलिस थानों में निवेदन दिए, वहां की पुलिस को पहले ही सुचित किया गया की भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा के लोग जेल में जाने के लिए आने वाले है, इससे घबराकर पुलिस वालों ने उनके प्रमुख कार्यकर्ता एवं नेतृत्व करने वाले लोगों को पहले ही हिरासत में ले लिया, जिसे कानुनी भाषा में डिटैन करना कहते है. सारे देश के पुलिस थानों का यही हाल था. सोशल मीडिया में भी इस पर खुब लिखा गया. तमीलनाडू के मुख्यमंत्री एम.के.स्टैलिन को ट्विटर पर हजारों लोगों ने टैग करके कन्याकुमारी के पुलिस प्रशासन के संविधान विरोधी कामों के बारे में जानकारी दी. सोशल मीडिया में लोगों का गुस्सा साफ तौर पर दिखाई दे रहा था. लोगों ने कन्याकुमारी के एसपी डी.एन.हरी किरण प्रसाद को इस्तेफे की भी मांग की, लेकीन तमीलनाडू की सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी. जब देश भर के कार्यकर्ताओं को पुलिस प्रशासन की तरफ से डिटैन करनी की खबरें वामन मेश्राम के पास पहूँची, तब उनका दुसरा विडीयो सोशल मीडिया पर आया. उसमें उन्होंने कहा की पुलिस के संविधान विरोधी कार्यों के चलते वह कानूनी लड़ाई भी लडेंगे और 31 जनवरी 2023 को देशव्यापी जेल भरो आंदेलन करेंगे. बतां दे की वामन मेश्राम की राष्ट्रव्यापी परिवर्तन यात्रा तो शासक जातियों द्वारा EVM में किए जा रहे षडयंत्र को उजागर करने और मूलनिवासी बहुजनों को सत्ता के शीर्ष पर बिठाने के लिए है. इसके पहले भी वामन मेश्राम के नेतृत्व में ही EVM भंडाफोड़ राष्ट्रव्यापी परिवर्तन यात्रा साल 2019 में निकाली थी. वह पहली परिवर्तन यात्रा जम्मू से कन्याकुमारी तक थी. केरल में पहूँचने से पहले ही केंद्र की RSS संचालित भाजपा सरकार ने देशव्यापी लॉकडाऊन लगा दिया, जिसकी वजह से वह अपने गंतव्य तक नहीं पहूँच पाई. इसलिए अब यह दुसरी परिवर्तन यात्रा कन्याकुमारी से शुरु हो रही थी. लेकीन उसे रोकने का काम स्टैलिन की पुलिस ने किया है. इस परिवर्तन यात्रा से तमीलनाडू के मुख्यमंत्री एम.के.स्टैलिन को शायद ही कोई नुकसान होगा, क्योंकि वामन मेश्राम स्टैलिन या उनकी विचारधारा के विरोधी नहीं है.
जहां तक विचारधारा की बात है स्टैलिन और वामन मेश्राम एक ही गैर ब्राह्मणवादी विचारधारा को मानने वाले बहुजन नेताओं में से ही है. बल्कि ऐसा कहा जा सकता है कि वामन मेश्राम स्टैलिन और उनकी विचारधारा का समर्थन करने वालों में से एक है. स्टैलिन भी अपने-आपको डा.बाबासाहब अम्बेडकर से लेकर पेरियार रामासामी तक के महापुरुषों के वारिस मानते है और वामन मेश्राम भी. और वे दोनों भी वर्तमान ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती दे रहे है. अभी स्टैलिन द्वारा तमीलनाडू विधान सभा के अंदर वहां गवर्नर ने डा.बाबासाहब अम्बेडकर व पेरियार रामासामी का नाम नहीं लिया इसलिए स्टैलिन ने उन्हें सभागृह से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लेकीन केवल इतना करना काफी नहीं है, ऐसी चर्चा अब लोगों में हो रही है. ये आर्टिकल लिखने तक तमीलनाडू के मुख्यमंत्री ने कन्याकुमारी के एसपी डी.एन.हरि किरण प्रसाद पर कोई कारवाई नहीं की, जब की लोग उसके संविधान विरोधी व्यवहार के लिए इस्तेफे की मांग कर रहे है. यहां मामला केवल वामन मेश्राम की परिवर्तन यात्रा को रोके जाने का नहीं है. मामला संविधान विरोधी कामों का है. संविधान ने मूलनिवासी बहुजनों को जो अधिकार दिए है, उसे हासिल करने की लड़ाई पुरे 108 साल चली है. राष्ट्रपिता म.फुलेजी से लेकर पेरियार रामासामी और डा.बाबासाहब अम्बेडकर तक सभी मूलनिवासी बहुजन महापुरुष एवं महानायिकाओं के त्याग, बलिदान और समर्पन की वजह से भारतीय संविधान निर्माण हुआ है. इसलिए इतने संघर्ष के बाद मिले मौलिक अधिकारों को छोड देना इतना आसान मामला नहीं है. मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों ने जितना संघर्ष उन अधिकारों को हासिल करने लिए किया, उससे कई गुना ज्यादा संघर्ष उन्हें सम्भालने के लिए करना चाहिए और वामन मेश्राम वहीं कर रहे है. इसमें ब्राह्मणवादी संगठन या विचारधारा विरोध करते है तो बात समझ में आती है, लेकीन पेरियार व बाबासाहब का नाम लेने वाले लोग भी अगर साथ सहयोग नहीं देंगे, तो उन अधिकारों की रक्षा करना मुश्किल हो जायेगा. हरियाणा की भाजपा सरकार ने ऐसा ही संविधान विरोधी कार्य किया था. उन्होंने वामन मेश्राम की अध्यक्षता वाली एक डिएनए परिषद को रोका था, उसे होने नहीं दिया था. वामन मेश्राम ने वह डिएनए परिषद तो ली, लेकीन भाजपा सरकार के संविधान विरोधी व्यवहार के विरोध में कानूनी लड़ाई शुरु कर दी और RSS के मुख्यालय पर प्रोटेस्ट मार्च भी निकाला था. और वह कोई साधारण प्रोटेस्ट मार्च नहीं था बल्कि भारत मुक्ति मोर्चा के तीन से साढ़े तीन लाख लोग उसमें शामिल हुए थे. उसमें SC, ST और OBC के लोग यानि संघ परिवार जिन्हें हिंदु कहता है, वहीं लोग RSS के मुख्यालय के प्रोटेस्ट मार्च में बड़ी संख्या में शामिल थे. उसकी तैयारी भी कई महिनों से चल रही थी और शायद उसी वजह से नागपुर के संघ मुख्यालय की सुरक्षा को भी बढ़ा दिया गया था. वामन मेश्राम का मानना है कि बात जब संविधान ने दिए हुए अधिकारों की रक्षा की होती है, तब संघर्ष होना लाज़मी है, लेकीन वह संघर्ष दुश्मनों के साथ होना चाहिए, आपसी नहीं. वामन मेश्राम EVM के षडयंत्र को तमाम भारतीयों के सामने उजागर करने का काम कर रहे है. भारतीय लोकतंत्र को EVM ने जितना नुकसान पहुँचाया है, उतना किसी ने नहीं. यह बात भी सही है कि EVM खुदबखुद घोटाले नहीं करती, बल्कि शासक जाति के लोग EVM में घोटाला करते है, जिससे लोकतंत्र की हत्या हो रही है. दुनिया के किसी भी विकसीत देश के आम चुनाव EVM से नहीं होते, वह सारे आज भी बैलेट पेपर का ही उपयोग करते है. भारत या ब्राझील जैसे विकसनशील देशों में वहां के चुनाव EVM से कराये जाते है.
पिछले साल अक्टूबर में हुए चुनाव के नतीजों के विरोध में ब्राझील की जनता सड़कों पर आ गई. करोंड़ों लोगों ने वहां की संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपती भवन घेर लिया था. भारत में भी अगर EVM का षडयंत्र उजागर हो गया, तो यहां भी करोड़ों लोग इस षडयंत्र के विरोध में उतर जायेंगे. शायद इसीलिए वामन मेश्राम EVM भंडाफोड़ राष्ट्रव्यापी परिवर्तन यात्रा लेकर निकले है. इससे नुकसान केवल उन्हीं का है, जिन्हें EVM में घेटाला करके फायदा मिल रहा है. क्या तमीलनाडू के मुख्यमंत्री एम.के.स्टैलिन भी इस EVM के षडयंत्र में शामिल है? अगर नहीं तो वे इस यात्रा में अवरोध बनने वाले संविधान विरोधी पुलिस पर कारवाई क्यों नहीं कर रहे? EVM से ही चुनाव कराने को लेकर भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग के अपने ही तर्क है. तर्क ये कि बैलेट पेपर से चुनाव के नतीजें आने में समय लगता है तो वही EVM से नतीजें जल्द आ जाते है. लेकीन संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग की जिम्मेदारी जल्द से जल्द चुनाव के नतीजें घोषित करने के लिए नहीं लगाई, बल्कि मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव हो इसके लिए लगाई है. इसीलिए उन्हें सरकार से अलग रखा, स्वायत्त रखा. लेकीन चुनाव आयोग केंद्र की RSS संचालित भाजपा सरकार के हाथ का खिलौना बनकर रह गया है. और वह केंद्र सरकार के लिए ही काम करता है. ऐसा नहीं है कि इस EVM के षडयंत्र में केवल भाजपा ही अकेली है. इसमें तो काँग्रेस भी बराबरी की भागीदार है या यूँ कहे कि काँग्रेस तो भाजपा से भी आगे है. क्योंकि EVM को भारतीय चुनाव प्रणाली में लाने का काम काँग्रेस ने ही किया था और उसका आम चुनावों में इस्तेमाल करने का काम भी काँग्रेस ने ही किया. काँग्रेस का EVM षडयंत्र सामने न आये इसलिए उन्होंने संघ से समझौता कर लिया की जैसे हमने 2004 व 2009 के लोक सभा चुनाव में घोटाला किया है, वैसे ही आप भी 2014 व 2019 में कर लेना, हमारा आपको समर्थन रहेगा, क्योंकि भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी EVM के विरोध में एक मोर्चा खोलने वाले थे. इसमें भाजपा के वर्तमान राज्य सभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी एवं जी.वी.एल.नरसिम्हाराव भी शामिल थे. जी.वी.एल.नरसिम्हाराव ने तो EVM का कालाचिठ्ठा खोलने के लिए ‘Democracy At Risk’ नाम की एक किताब भी लिखी है. दुसरी ओर सुब्रमण्यम स्वामी 2009 के लोक सभा चुनाव के बाद EVM को घसीटकर सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए. जो चुनाव आयोग लोगों के बीच में EVM की पवित्रता की बातें करता है, वही चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में EVM की पवित्रता सिद्ध नहीं कर पाया. नतिजन सुप्रीम कोर्ट ने भी माना की EVM में गड़बड़ी हो सकती है और उसके साथ VVPAT नाम की नई मशीन जोड़ने के आदेश दिए. सुप्रीम कोर्ट ने EVM पर अपना लैंडमार्क जजमेंट 08 अक्टूबर 2013 को दिया था. चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि 2014 में होने वाले लोक सभा चुनाव में EVM के साथ VVPAT लगनी चाहिए. पर चुनाव आयोग ने चुनाव की तैयारी करने के लिए समय कम होने का बहाना बनाकर EVM के साथ VVPAT नहीं लगाई. इसका नतीजा ये रहा कि भाजपा चुनाव जीत गई. उसके बाद वह सारा मामला वामन मेश्राम ने अपने हाथों में लिया और EVM विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया. उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी की केस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिए हुए फैसले को लेकर फिर से सुप्रीम कोर्ट में केस डाली और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल न करके केंद्रीय चुनाव आयोग ने न्यायालय की अवमानना की है. इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि उनके पास VVPAT खरीदने के लिए पैसा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने वामन मेश्राम के समर्थन में 24 अप्रैल 2017 को फैसला सुनाया की हर एक EVM के साथ VVPAT मशीन लगाना बंधनकारक होगा, तब जाकर चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार से पैसे की मांग की और केंद्र सरकार ने 3200 करोड़ रुपया मंजुर किया. उसके बाद 2019 के लोक सभा चुनाव में EVM के साथ VVPAT मशीन लगाई गई. लेकीन काँग्रेस के साथ हुए समझौते के तहत 2019 का चुनाव भाजपा ने EVM में घोटाला करके ही जित लिया.
EVM में जो कई प्रकार की खामियां है, उनमें सबसे बड़ी खामी ये है कि उसमें डाले गए मतों का सत्यापन नहीं किया जा सकता, क्योंकि डाले गए वोट फिज़िकल नहीं होते, वह डिजिटल होते है. VVPAT लगाने से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता था. VVPAT का फुल फॉर्म है Voter's Verification Paper Audit Trail यानि हर एक मतदाता के मतों का कागज़ के द्वारा सत्यापन करना, जैसे ATM से पैसा निकालने के बाद पर्ची निकलती है और हम अपने बैलेंस को चेक करते है. इस प्रकार की मशीन लगाने का प्रस्ताव अब ब्राझील के विरोधी दल के नेता जैर बोल्सोनारो ने भी उनके यहां दिया है. लेकीन EVM में होने वाला मतों का घोटाला तभी पकड़ा जा सकता है, जब EVM के वोट और VVPAT से निकलने वाली पार्चियों को गिना जायेगा यानि मतों का ऑडिट होगा. यह बात सुप्रीम कोर्ट ने अपने 08 अक्टूबर के फैसले में कही थी. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित स्थिती में रिकाऊंटींग की जायेगी. रिकाऊंटींग का मतलब होता है हर एक वोट का सत्यापन करना. लेकीन चुनाव आयोग ने ऐसा नहीं किया. उसके बाद फिर से वामन मेश्राम सुप्रीम कोर्ट गए और कहा कि जब तक EVM के मतों का VVPAT की पर्चियों के साथ सत्यापन नहीं किया जाता तब तक यह घोटाला होता रहेगा और रिकाऊंटींग की बात खुद शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कही है और चुनाव आयोग फिर से अदालत की अवमानना कर रहा है. वामन मेश्राम के बाद 21 विपक्षी दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज की. उनका कहना था कि EVM-VVPAT का 50% मिलान होना चाहिए. दोनों केस अलग-अलग थी, लेकीन सुप्रीम कोर्ट ने वामन मेश्राम व 21 विपक्षी दलों की केस की सुनवाई और फैसला एक साथ किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि 50% नहीं लेकीन हर विधान सभा की किसी भी पांच बुथ पर मिलान करना होगा. 50% मिलान की बात को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के तर्क के साथ सहमत होकर खारिज कर दिया की इसमें ज्यादा समय लगेगा और नतीजें आने के लिए देरी होगी. दरअसल, शीर्ष अदालत को मुक्ति, निष्पक्ष औ पारदर्शी चुनाव कराने के दृष्टी से सोचना चाहिए था, लेकीन उन्होंने चुनाव आयोग की बेतुकी बात को मानकर निर्णय दिया. फैसला देने वाले सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई थे. उनकी निवृत्ती के बाद उन्हें भाजपा ने राज्य सभा का सदस्या बना दिया और लोगों को समझ में आया कि न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भाजपा के समर्थन वाला फैसला क्यों दिया. इसमें भी चुनाव आयोग ने चालाकी की कि पांच बुथ की जगह उन्होंने केवल पांच EVM-VVPAT का मिलान करना शुरु कर दिया. इसके बावजुद भी कई जगहों पर EVM-VVPAT मैच नहीं हुआ, पर चुनाव आयोग ने उस पर कोई एक्शन नहीं लिया. दुसरी बात ये कि चुनाव आयोग मत गणना पहले कर लेता है और मिलान का कार्य अंत में रखता है. इससे होता ये है कि मत गणना के अंत तक किसी राजनीतिक दल का प्रतिनिधी मत गणना केंद्रों पर नहीं रुकता. हार को सामने देखकर वह सभी राजनीतिक दल के प्रतिनिधी वहां से चले जाते है. और इस तरह से मिलान का काम होता है या नहीं होता इसके बारे में कोई नहीं जानता. असल में मिलान का कार्य मत गणना शुरु होने से पहले करना चाहिए, ऐसी एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. कुल मिलाकर मामला ये है कि VVPAT लगाने के बावजुुद भी EVM में धांधली होती है, ऐसा कई राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों का मानना है और वह इसका विरोध भी करते है. वामन मेश्राम की EVM भंडाफोड़ राष्ट्रव्यापी परिवर्तन यात्रा की घोषणा के बाद ही सभी विपक्ष दल सक्रीय हो गए. बसपा सुप्रिमो बहन मायावती ने एक प्रेस वार्ता में EVM को लेकर सवाल उठाये, तो वहीं काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी EVM पर फिर से आघात किया है. वामन मेश्राम की परिवर्तन यात्रा शुरु होने से पहले ही अगर ये स्थिती है, तो यात्रा एक साल चलकर जब 670 जिलों से गुज़रेगी और अगले साल ठिक लोक सभा चुनाव से पहले कश्मीर पहूँचेगी, तब देश का EVM के बारे में क्या रुख होगा इससे अंदाजा लगाया जा सकता है. पर एक बात समझने से परे है कि एम.के.स्टैलिन वामन मेश्राम की यात्रा को क्यों रोक रहे है?
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