कोरोना महामारी की पहली लहर के बीच बाबा रामदेव ने कोरोनिल दवा को लॉन्च किया था. बाबा रामदेव ने दावा किया था कोरोनिल सात दिनों में कोविड की बीमारी को ठीक कर सकती है.
नई दिल्ली : कोरोना महामारी की पहली लहर के बीच बाबा रामदेव ने कोरोनिल दवा को लॉन्च किया था. बाबा रामदेव ने दावा किया था कोरोनिल सात दिनों में कोविड की बीमारी को ठीक कर सकती है. हालांकि, उनकी कंपनी रामदेव के इस दावे के समर्थन में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दे पाई थी. अब इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव की जमकर खिंचाई कर दी है. अदालत ने उनसे कहा है कि शब्दों को तोड़-मरोड़कर मत बोलिए, साफ-साफ कहें कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर किए गए मामले में बाबा रामदेव का स्पष्टीकरण मानने से इनकार कर दिया. इसमें उन्हें पतंजलि आयुर्वेद की बनाई गई कोरोनिल के बारे में गलत जानकारी देने से रोकने की मांग की गई थी.
अदालत में पिछली सुनवाई के दौरान बाबा रामदेव और पतंजलि ने कहा था कि वे दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन बार और बेंच के वकील के परामर्श से इस मामले पर स्पष्टीकरण जारी करेंगे. हालांकि गुरुवार को जस्टिस अनूप जयराम भंभानी को बताया गया कि स्पष्टीकरण पर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन पाई है. इसके बजाय, रामदेव के वकील ने एक प्रस्तावित स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, जिसे न्यायाधीश ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.
जस्टिस अनूप भंभानी ने देखा कि स्पष्टीकरण ‘अपनी पीठ पर थपथपाने’ जैसा था और रामदेव द्वारा किए गए किसी भी दावे को शायद ही वापस लिया हो. जज ने उस स्पष्टीकरण पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘देखिए, बात यह है कि ऐसे अनावश्यक शब्दों और बारीकियों से दूर रहना चाहिए.’ जज ने आगे कहा, ‘आपने जनता को दो धारणाएं दींः एक यह है कि एलोपैथिक डॉक्टरों के पास इलाज नहीं है और दूसरा यह कि कोरोनिल इलाज है. दो विचार व्यक्त करने के लिए शब्द हैं. अगर प्रामाणिक विचार है तो इस स्पष्टीकरण में छुपाया गया है.’
न्यायाधीश पिछले साल मई में रामदेव के दिए गए एक बयान का जिक्र कर रहे थे जिसमें दावा किया गया था कि कोरोना वायरस वैक्सीन की दो खुराक मिलने के बाद भी 1,000 डॉक्टरों की मौत हो गई थी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बाबा रामदेव के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. इससे पहले फरवरी 2021 में रामदेव ने पतंजलि आयुर्वेद द्वारा एक शोध पत्र जारी किया था, जिसमें दावा किया गया था कि कोरोनोवायरस संक्रमण के इलाज के लिए कोरोनिल पहली साक्ष्य-आधारित दवा थी. हालांकि, उसी दिन डब्ल्यूएचओ ने बिना किसी का नाम लिए स्पष्ट किया था कि उसने किसी पारंपरिक दवा की प्रभावशीलता की समीक्षा या प्रमाणित नहीं किया था.
गुरुवार की सुनवाई में मेडिकल एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने तर्क दिया कि रामदेव और उनकी कंपनी द्वारा जारी स्पष्टीकरण में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि कोरोनिल कोविड -19 के इलाज के लिए इलाज या दवा नहीं थी. बार एंड बेंच ने बताया कि सिब्बल ने कहा कि उनके पास यह दिखाने के लिए दस्तावेज हैं कि कोरोनिल को अभी भी बीमारी की दवा के रूप में विज्ञापित किया जा रहा है. सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि उनका सुझाव था कि रामदेव को यह बताना चाहिए कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है और न ही इसके इलाज की दवा है.
उधर बाबा रामदेव ने एक बार फिर एलोपैथी पर हमला करते हुए चिकित्सा पद्धति को कटघेरे में खड़ा किया है. एलोपैथी को झूठ की पैथी करार देते हुए बाबा ने कहा कि इस पैथी में मरीजों का इलाज संभव नहीं होने की बात कही जाती है. बाबा की मानें तो अंग्रेजी दवाओं के इस्तेमाल के बिना ही योग के सहारे लाखों लोगों के लीवर, किडनी, और फेफड़ों से संबंधित कई गंभीर बीमारियों को उन्होंने ठीक करके दिखाया है. बता दें कि बाबा रामदेव और एलोपैथी के बीच हमेशा विवादों का नाता रहा है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन करके उसके संचालन का जिम्मा बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को सौंपा है. बाबा रामदेव ने यह जिम्मेदारी दिए जाने पर पीएम मोदी का आभार जताया है.
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