व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए पानी बहुत जरूरी है. कोई भी इंसान बिना खाने के महीनेभर तक जिंदा रह सकता है, लेकिन बिना पानी के नहीं.
नई दिल्ली : व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए पानी बहुत जरूरी है. कोई भी इंसान बिना खाने के महीनेभर तक जिंदा रह सकता है, लेकिन बिना पानी के नहीं. इंसान को स्वस्थ रहने के लिए हर दिन कम से कम 2 लीटर पानी पीना चाहिए. लेकिन आज हम जो पानी पी रहे हैं, वो जहर बन चुका है. ये बात सरकार ने संसद में मानी है. सरकार ने राज्यसभा में दिए आंकड़े सिर्फ चौंकाते ही नहीं बल्कि डराते भी हैं. ये आंकड़े डराते हैं कि हम जो पानी पी रहे हैं वो जहरीला है. क्योंकि, देश के लगभग सभी राज्यों के ज्यादातर जिलों के भूजल में जहरीली धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई है.
सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि देश में पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है. आंकड़ों के मुताबिक, देश के लगभग सभी राज्यों के अधिकांश जिलों में भू-जल में जहरीली धातुओं की मात्रा अधिक पाई गई है. 25 राज्यों के 209 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है. 29 राज्यों के 491 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में आयरन की मात्रा 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी ज्यादा है.
11 राज्यों के 29 जिलों के कुछ हिस्सों में भू-जल में कैडमियम की मात्रा 0.003 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है. जबकि 16 राज्यों के 62 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में क्रोमियम की मात्रा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है. वहीं, 18 राज्यों के 152 जिले ऐसे हैं जहां यूरेनियम की मात्रा 0.03 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है.
जल शक्ति मंत्रालय की जानकारी के मुताबिक, देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को जमीन से पानी मिलता है. इसलिए यदि भूजल में खतरनाक धातुओं की मात्रा निर्धारित मानक से अधिक हो जाए तो इसका मतलब है कि पानी जहर बन रहा है. राज्यसभा में सरकार ने रिहायशी इलाकों की संख्या भी बताई है जहां पीने के पानी के स्रोत प्रदूषित हो गए हैं. इसके मुताबिक, 671 क्षेत्र फ्लोराइड से, 814 क्षेत्र आर्सेनिक से, 14,079 क्षेत्र आयरन, 9,930 क्षेत्र लवणता से, 517 क्षेत्र नाइट्रेट से और 111 क्षेत्र भारी धातुओं से प्रभावित हैं.
समस्या शहरों की तुलना में गांवों में अधिक गंभीर है, क्योंकि भारत की आधी से अधिक आबादी गांवों में रहती है. यहां पीने के पानी के मुख्य स्रोत हैंडपंप, कुएं, नदियां या तालाब हैं. यहां पानी सीधे जमीन से आता है. इसके अलावा गांवों में आमतौर पर इस पानी को साफ करने का कोई तरीका नहीं है. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं.
पानी में आर्सेनिक, लोहा, सीसा, कैडमियम, क्रोमियम और यूरेनियम की मात्रा निर्धारित मानक से अधिक होने का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अधिक आर्सेनिक से त्वचा रोगों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. आयरन की मात्रा ज्यादा होने पर नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां, जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन हो सकता है. पानी में लेड की अधिक मात्रा भी हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकती है. कैडमियम होने पर किडनी की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. क्रोमियम की अधिक मात्रा से छोटी आंत में डिफ्यूज हाइपरप्लासिया हो सकता है, जिससे ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है. पीने के पानी में यूरेनियम की अधिक मात्रा से किडनी की बीमारियों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
केंद्र सरकार ने संसद को बताया कि पानी राज्य का विषय है, इसलिए लोगों को साफ पीने का पानी उपलब्ध कराना राज्यों की जिम्मेदारी है. हालांकि, साफ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार कई योजनाएं भी चला रही है. 21 जुलाई को सरकार ने लोकसभा को बताया कि अगस्त 2019 में जल जीवन मिशन की शुरुआत की गई थी. इसके तहत 2024 तक हर ग्रामीण घर में नल के जरिए पेयजल पहुंचाया जाएगा. सरकार के जवाब के मुताबिक फिलहाल देश में अब तक 19.15 करोड़ ग्रामीण घरों में से 9.81 करोड़ घरों में नल के पानी की आपूर्ति की जा रही है.
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