संसद में 11 दिसम्बर, 2019 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी सीएए पारित होने के बाद देशभर में इस कानून का जमकर विरोध करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे.
नई दिल्ली : संसद में 11 दिसम्बर, 2019 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी सीएए पारित होने के बाद देशभर में इस कानून का जमकर विरोध करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस कानून को ठंडे बस्ते में डाल दिया. अब एक बार फिर से सीएए कानून का जिन्न बोतल से बाहर आता दिख रहा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस कानून को लागू करने को लेकर बड़ा बयान दिया है. अमित शाह ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल में कहा कि वैक्सीनेशन अभियान पूरा होने के बाद सीएए लागू कर दिया जाएगा.
पश्चिम बंगाल में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी से मुलाकात के बाद शाह ने सीएए कानून को लागू करने की समयसीमा की जानकारी दी है. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को देश में वैक्सीनेशन अभियान पूरा होने के बाद लागू कर दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि सीएए कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को भारत में नागरिकता देने में सहयोगी होगा.
शाह और पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी के बीच मंगलवार को संसद भवन में मुलाकात हुई. इसके बाद सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि गृह मंत्री ने उन्हें अवगत कराया है कि केंद्र सरकार सीएए के लंबे समय से लंबित कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ेगी, जब कोविड टीकाकरण की तीसरी खुराक पूरी हो जाएगी. मई में बंगाल में एक रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था कि कोविड महामारी समाप्त होने के बाद कानून लागू किया जाएगा.
गौरतलब है कि सीएए 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और 24 घंटे के भीतर 12 दिसंबर को इसे अधिसूचित कर दिया गया था. जिसके बाद देश भर में इसका काफी विरोध भी हुआ था. हालांकि, इसका कार्यान्वयन अटका हुआ है, क्योंकि केंद्र सरकार ने अभी तक अधिनियम के लिए नियम नहीं बनाए हैं. यह कानून पड़ोसी देशों-बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ऐसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने की बात कहता है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे. सीएए पारित होने के कुछ समय बाद ही देश भर में कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लग गया. जिसके बाद इस विवादित कानून को देश भर में लागू करने की चर्चा ठंडी पड़ गई.
बता दें कि सीएए कानून संसद में पारित होने के बाद इस कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. कांग्रेस सहित कुछ सियासी दलों का कहना है कि यह मुसलमानों के विरोध में है. अगर वास्तविकता देखी जाए तो यह कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं बल्कि एससी, एसटी और ओबीसी के खिलाफ है. क्योंकि असम में 2019 में जारी कि गई एनआरसी की अंतिम सूची में कुल 19 लाख लोगों को नागरिकता की सूची से बाहर कर दिया. इसमें मुसलमानों की संख्या 4.5 लाख के आसपास है. वहीं एससी, एसटी और ओबीसी की संख्या 14 लाख से ज्यादा है.
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सीएए कानून किसके खिलाफ है. अगर यह विवादित कानून फिर से लागू होता है तो इसकी गाज मुसलमानों के बजाए एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों पर ज्यादा गिरेगी. बड़ी संख्या में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को नागरिकता सूची से हटाकर उन्हें विदेशी घोषित किया जाएगा और डिटेंशन सेंटर यानी एक तरह की जेल में डाल दिया जाएगा.
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