गरीबी और बीमारी से जूझ रहा उत्तर प्रदेश और बिहार का टॉपर फुटबालर टुन्नी राम
चन्दौली: भारत में जातिवाद आज भी इस कदर हावी है जिसका खामियाजा होनहार, काबिलियत रखने वाले और भारत का नाम रोशन करने वाले मूलनिवासी बहुजन समाज के लाखों-करोड़ों खिलाड़ी, छात्र, युवा भुगत रहे हैं. जबकि, बताया जाता है कि 1947 में भारत आजाद हो गया. भारत भले ही अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया, परन्तु, ब्राह्मणों की गुलामी आज भी बरकरार है. जो गुलामी 1974 से पहले थी वहीं गुलामी आज भी है. आज भी एससी, एसटी, ओबीसी, मायनॉरिटी के साथ भेदभाव, जातिवाद, छुआछूत बड़े पैमाने पर जारी है. इसी जातिवाद का खामियाजा उत्तर प्रदेश के जिला चन्दौली में बरहनी ब्लाक, कंदवा थाना क्षेत्र के जलालपुर गांव का एक फुटबाल और बॉलीबाल टॉपर खिलाड़ी टुन्नीराम (74 वर्षीय) आज तक इसलिए भुगत रहा है, क्योंकि उनका जन्म अनुसूचित जाति में हुआ है.
तथाकथित आजादी के पहले भी यूरेशियन ब्राह्मण मूलनिवासी बहुजन समाज को किसी भी क्षेत्र में अवसर नहीं दिए और न ही आज भी दे रहे हैं जबकि, संविधान में उनको हक अधिकार मौलिक अधिकार के रूप दिया गया है. लेकिन, मूलनिवासी बहुजन समाज बिना अवसर मिले केवल अपने बल बूते पर वो भी कम समय में भी इतिहास लिखने में पीछे नहीं हटे हैं, बल्कि उन्होंने हर क्षेत्र चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, खेल का मैदान हो या युद्ध का मैदान हर क्षेत्र में नया इतिहास लिखा है और अपने भारत देश का नाम विश्व पटल पर रखा है. ऐसे ही लाखों मूलनिवासी योद्धाओं में चंदौली जिले के जलालपुर गांव के टुन्नी राम का नाम भी शामिल है. 50-60 के दशक में टुन्नी राम को फुटबॉल और वॉलीबॉल का जादूगर कहा जाता था. लेकिन, देश में व्याप्त ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने इस जादूगर खिलाड़ी को न केवल पीछे धकेल दिया, बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी विजय पताका फहराने वाले टुन्नीराम का नाम इतिहास के पन्नों से भी गायब कर दिया है. लेकिन, बामसेफ ऑफसूट संगठन भारत मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने उन्हें ढूंढ़ निकाला.
सूत्रों ने बताया कि बृहस्पतिवार 13 मई 2021 को स्व. बाबूलाल लोहार और श्रीमान भारती कंदवा थाना क्षेत्र के जलालपुर गांव में टुन्नी राम के घर पहुंचे. वहां पहुंचकर जब उन्होंने सारी जानकारी ली तो पता चला कि जातिवाद के कारण एक खेल क्षेत्र के जादूगर कहे जाने वाले टॉपर खिलाड़ी को जातिवाद के कारण इतना पीछे धकेल दिया गया कि टॉपर खिलाड़ी आज गरीबी और बीमारी का दंश झेल रहा है. उनके अनुसार, टुन्नी राम का जन्म अनुसूचित जाति के एक गरीब परिवार में 5 मई 1947 को हुआ. उनके पिता का नाम रामशरण राम था. उनकी पढ़ाई वहीं स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में हुआ. 10वीं पास करने के बाद 2 साल की आईटीआई की. लेकिन, स्कूलों में जातिवाद और गरीबी के चलते वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सके. परन्तु, उनको बचपन से फुटबॉल और वॉलीबॉल का शौक था. 50-60 दशक में उनकी शौक तब पूरी हुई जब वे फुटबॉल और वॉलीबॉल के जादूगर कहे जाने लगे.
बातचीत में टुन्नी राम ने रोते हुए कहा, वे कई बार उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ से फुटबॉल और वॉलीबॉल का राज्य स्तरीय टूर्नामेंट खेला और जीता. उन्होंने आगे कहा, मैंने कई बार उत्तर प्रदेश और बिहार को मेडल जीतकर दिया है. लेकिन, अनुसूचित जाति होने के कारण मुझे हमेशा पीछे धकेल दिया जाता था. मेरी वजह से दोनों राज्यों को मेडल मिला है, लेकिन जातिवाद के चलते उनको आज तक कोई मेडल नहीं मिला. इसका कारण पूछने पर टुन्नी राम ने कहा, उनके नाम पर दूसरा कोई मेडल ले लेता था. उनका कहना है कि यह एक बार नहीं, बल्कि बार होता था. जो ऊंची जाति के होते थे वे इनके नाम पर मेडल ले लेते थे. इस तरह से उनको पीछे धकेल दिया गया.
परिवार और परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में पूछने पर रोते हुए बताया कि दो साल से उनको लकवा (पैरालिसिस) हो चुका है. उनके कुछ अंग ठीक से काम नहीं कर पाते है, जिससे वे एक ही जगह पर रहते हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से इलाज के लिए पैसे नहीं हो पाते हैं. उनके पास दो तीन बच्चे हैं जिसमें दीपक कुमार बड़े बेटे और राम प्रकाश छोटे बेटे एवं उषा नाम की एक बेटी है. बड़े बेटे और बेटी की शादी हो चुकी है, छोटे बेटे की शादी करनी है. दोनों बेटे बेरोजगार वहीं जमीन के नाम पर मात्र 8 बिस्वा जमीन है. अंत में उन्होंने कहा, टॉपर खिलाड़ी होने के बावजूद चाटूकारों और धोखेबाजों की वजह से आज वे गरीबी और बीमारी का दंश झेल रहे हैं. सरकार भी कोई मदद नहीं कर रही है और न ही कोई सरकारी योजना मिल रहा है.
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