सहारनपुर : जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट मे दायर एक याचिका में दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की है. याचिका में जमीयत मांग कर रही है कि, ऐसे दलित जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया है उनसे दलित होने का अधिकार ना छीना जाए. अगर उन्होंने मुस्लिम या फिर इसाई धर्म अपना लिया है तो उन्हे वह सभी सुविधाएं और अधिकार मिलते रहने चाहिए जो उन्हे पहले मिलते थे. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने के सवाल पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महमूद मदनी का कहना है कि पिछले लंबे समय से जमीयत इसकी मांग करती आई है. बावजूद इसके सरकारों ने इस मामले में कोई सुनवाई नहीं की. इसलिए अब जमीयत अपनी इसी मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा रही है.
मौलाना महमूद मदनी द्वारा दायर याचिका में सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्रा आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 2008 की रिपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश किया गया है. याचिका में इस तथ्य का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि इस्लाम एक धर्म के रूप में सभी के दरमियान समानता की सीख देता है. याचिका में बताया गया है कि इस्लामी जीवन दर्शन में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि भारत के मुसलमानों पर हिंदू समाज का प्रभाव है, इसलिए मुस्लिम समाज में भी जाति व्यवस्था और उस पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव पाए जाते हैं. स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में भारतीय मुसलमानों में जाति व्यवस्था को स्वीकार किया है.
साथ ही यह बात भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि 2008 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें यह लिखा है कि शहरी भारत में दलित
मुसलमानों की 47 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है, जो कि हिंदू दलित और ईसाई दलित से कहीं अधिक है. इन परिस्थितियों में भेदभाव का यह रूप अनुचित है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के विरुद्ध है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से यह याचिका एडवोकेट एमआर शमशाद ने दायर की है.
गौरतलब है कि बीते दिनों केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के जवाब में दायर हलफनामा में कहा कि ईसाई और इस्लाम, दोनों ही विदेशी धर्म हैं, इसलिए वहां छुआछूत नहीं होती. लिहाजा धर्म परिवर्तन कर इस्लाम या ईसाई बनने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.
जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सभी धर्मों में दलितों के लिए अनुसूचित जाति का दर्जा देने का समर्थन किया था. लेकिन सरकार ने इसे खामी भरा बताया है. सरकार ने कहा कि ये रिपोर्ट बिना किसी क्षेत्रीय अध्ययन के बनाई गई थी, इसलिए जमीनी स्थिति पर इसकी पुष्टि नहीं होती. इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट को बनाते समय ये भी ध्यान नहीं रखा गया कि पहले से सूचीबद्ध जातियों पर क्या असर होगा, इसलिए सरकार ने इस रिपोर्ट को नामंजूर कर दिया था.