अहमदाबाद : गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 19 जिलों की 89 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 788 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है. पहले चरण में 62.89 फीसदी लोगों ने वोट ड़ाला. यह आंकड़ा 2017 में हुए चुनाव से 5.49 फीसदी कम रहा. इतना ही नहीं इस बार 10 साल की सबसे कम वोटिंग हुई. 2012 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 70.75 फीसदी वोट पड़े थे. इस बार पिछले चुनाव की तुलना में वोटिंग प्रतिशत घटा है, जिसके चलते राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं.
बीते चुनाव में 2012 की तुलना में करीब 4 फीसदी कम वोटिंग से भाजपा को इस रीजन में 15 सीटों का नुकसान हुआ था. इस क्षेत्र में पाटीदार, ओबीसी और आदिवासी वोट निर्णायक माने जाते हैं. इन 89 सीटों में 32 पाटीदार बहुल और 16 आदिवासी बहुल सीटें हैं. सिर्फ दो जिलों नर्मदा और तापी में 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई है. 9 जिलों में वोटिंग 50 फीसदी से 60 फीसदी के बीच हुई है. ओवरऑल वोटिंग को देखें महानगरों, पाटीदारों के इलाकों में कम, लेकिन आदिवासियों के इलाकों में ज्यादा वोटिंग हुई है. अहम यह है कि शहरी क्षेत्र को भाजपा का गढ़ माना जाता है. लेकिन शहरों में भी 11 फीसदी वोटिंग घटी है. केबल ब्रिज हादसे के बाद चर्चा में आए मोरबी में 67.65 फीसदी वोट पड़े हैं. यहां 2017 में 73.66 फीसदी वोटिंग हुई थी.
पहले चरण में कुल 32 सीटें पाटीदार बहुल हैं. इनमें 23 सीटों पर पाटीदार समुदाय 25 से 55 फीसदी तक है. 2017 में 65.56 फीसदी वोटिंग होने पर भाजपा-कांग्रेस दोनों को 16-16 सीटें मिली थीं. इस बार 62.92 फीसदी वोटिंग हुई है. 89 सीटों में से 16 आदिवासी बहुल हैं. इनमें 14 एसटी रिजर्व हैं. 2012 से लगातार वोटिंग प्रतिशत गिर रहा है. 2012 में इन पर 78.97 फीसदी वोटिंग पर भाजपा को 7, कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं. 2017 में 77.83 फीसदी वोटिंग होने पर भाजपा को 5, कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं. इस बार इन सीटों पर 69.86 फीसदी वोटिंग हुई है.
सौराष्ट्र-कच्छ में सिर्फ 58 फीसदी मतदान हुआ. वहीं, दक्षिण गुजरात में 66 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई है. इस तरह सौराष्ट्र में दक्षिण गुजरात के मुकाबले 8 फीसदी कम वोटिंग हुई है. बाकी के अन्य जिलों में 50 फीसदी से भी कम वोटिंग हुई है. इस तरह पाटीदार क्षेत्र में कम मतदान ने प्रत्याशियों को असमंजस में डाल दिया है. पिछले चुनाव (2017) की बात करें तो इन सीटों पर कुल 67.23 फीसदी वोट पड़े थे. इस दौरान जिन सीटों पर 70 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हुई थी, उनमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी. गुजरात चुनाव के पहले चरण में सौराष्ट्र-कच्छ और दक्षिण गुजरात के जिलों की वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से इस बार करीब आठ फीसदी वोटिंग कम हुई है.
सामाजिक अध्ययन केंद्र में एक सामाजिक विज्ञान शोधकर्ता किरण देसाई ने कहा कि बीजेपी के मतदाताओं को यकीन है कि पार्टी जीतने जा रही है. इसलिए वे वोट डालने नहीं गए. उन्होंने कहा कि मतदान में गिरावट कुछ विजेताओं के मार्जिन में कटौती कर सकती है. पिछले चुनावों की तुलना में कुल मिलाकर उत्साह गायब था. कम वोटिंग के चलते चुनावी एक्सपर्ट अब इसके मायने तलाशने में जुट गए हैं. आमतौर पर कम मतदान को सत्ताधारी दल के लिए फायदे के रूप में देखा जाता है. एक्सपर्ट्स की मानें कई बार वोटर्स जब मौजूदा सरकार से संतुष्ट होते हैं तो वोटिंग के लिए घरों से कम निकलते हैं. जबकि वोटिंग फीसदी में इजाफे को परिवर्तन के रूप में देखा जाता है. हालांकि असली तस्वीर 8 दिसंबर को ही स्पष्ट होगी. गौरतलब है कि गुजरात में 27 सालों से बीजेपी की सरकार है और पार्टी लगातार सातवीं बार सत्ता पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रही है. इस बार बीजेपी का मुकाबला न केवल कांग्रेस से है बल्कि आम आदमी पार्टी से भी है जो अपने आप को मुख्य विपक्षी दल साबित करने के प्रयास में जुटी है.