नई दिल्ली : भले ही दुनिया के तमाम देशों में लोकतंत्र में भारी गिरावट के पीछे राजनीति और आर्थिक संकट हो सकता है. लेकिन भारत में लोकतंत्र में भारी गिरावट के पीछे ब्राह्मणवाद और उनकी व्यवस्था है. भारत में बहुसंख्यक लोगों को उनके ही देश में इसलिए अधिकार वंचित रखा गया है. क्योंकि, भारत में लोकतंत्र नहीं, ब्राह्मण तंत्र है. कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया पर केवल ब्राह्मणों का ही कब्जा है. इतना ही नहीं जहां सत्ता पक्ष में ब्राह्मण है तो वहीं विपक्ष में भी ब्राह्मण ही हैं. इसलिए सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर अपनी व्यवस्था मजबूत बनाने में लगे हुए हैं. यही कारण है कि भारत के मूलनिवासी बहुजनों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, धार्मिक, मानसिक गुलाम बनाया गया है.
गौरतलब है कि दुनिया के जितने देशों में लोकतांत्रिक सरकारें हैं उनमें से लगभग 50 फीसदी में लोकतंत्र गिरावट की ओर है. यूक्रेन युद्ध के बाद यह क्षरण और तेज हो गया है. एक अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है. इंटरनेशनल आइडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के आधे से ज्यादा लोकतांत्रिक देशों में यह लोकतांत्रिक मूल्य क्षरण की ओर हैं. संस्था के महासचिव केविन कैसस-जमोरा ने कहा, “लोकतंत्र के लिए अब अप्रत्याशित मुश्किलें देख रहे हैं. राजनीतिक और आर्थिक संकटों ने इन मुश्किलों को और गहरा दिया है. महामारी और यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट ने इन मुश्किलों को जन्म दिया है.
कैसस-जमोरा समझाते हैं कि किन कारकों को वह लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट के रूप में देखते हैं. वह कहते हैं हो सकता है कि चुनावों के विश्वसनीयता को चुनौती मिल रही हो. यह भी हो सकता है कि कानून का राज खतरे मे हो. यह भी हो सकता है कि नागरिकों की आवाजों के लिए जगह कम हो रही हो. आइडिया ने उन देशों की सूची जारी की है जहां लोकतंत्र सबसे ज्यादा नुकसान झेल रहा है. इन देशों को पीछे की ओर खिसक रहे देश कहा गया है. पिछले साल इनकी संख्या छह थी और पहली बार अमेरिका को इनमें शामिल किया गया था. इस बार यह संख्या बढ़कर सात हो गई है और अल सल्वाडोर को भी इस सूची में जोड़ गया है. अन्य देशों हैः ब्राजील, हंगरी, भारत, मॉरिशस और पोलैंड.
कैसस-जमोरा ने कहा कि अमेरिका की स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है. उन्होंने कहा, हम अमेरिका में जो देख रहे हैं, उसे लेकर तो मैं खासौतर पर चिंतित हूं. रिपोर्ट कहती है कि इन देशों में राजनीतिक ध्रुवीकरण, संस्थागत अकर्मण्यता और नागरिक आजादी को खतरे बढ़ रहे हैं. अमेरिका के बारे में कैसस-जमोरा ने कहा, अब तक यह स्पष्ट है कि नई सरकार चुने जाने से जो बुखार चढ़ा हुआ था, वह उतरा नहीं है. ध्रुवीकरण का स्तर बहुत ज्यादा है और बिना किसी सबूत के चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया जा रहा है. कैसस-जमोरा इस बात की ध्यान दिलाते हैं कि यौन और प्रजनन अधिकारों में अमेरिका के पीछे की ओर जाते कदम साफ दिखाई दे रहे हैं जो अद्वीतीय है क्योंकि ज्यादातर देश, बल्कि लगभग सारे ही देश यौन और प्रजनन अधिकारों के मामले में आगे की ओर बढ़ रहे हैं. अमेरिका पीछे की ओर जा रहा है.
इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि जिन देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों का स्तर बेहतर था, वहां भी अब परेशान करने वाली बातें दिखने लगी हैं. रिपोर्ट कहती है, अस्थिरता और व्यग्रताओं के दौर में लोकतंत्रों के लिए संतुलन बनाना मुश्किल होता जा रहा है. लोकलुभावन बातें करने वाले मजबूत हो रहे हैं और लोकतांत्रिक विकास या तो रुक गया है या फिर पीछे की ओर जा रहा है रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच साल में सभी मानकों पर विकास पूरी तरह रुक गया है और स्थिति वैसी ही हो गई है जैसी 1990 के दशक में थी. कैसस-जमोरा कहते हैं, पिछले एक-दो दशकों में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की चूलें हिल गई हैं और यह एकदम जाहिर है कि हमारे समय का यह ज्वलंत मुद्दा है.
आधे से ज्यादा देशों में नुकसान
आइडिया के मुताबिक जिन 173 देशों का अध्ययन किया गया है उनमें से 104 में लोकतंत्र है और 52 में उसका क्षरण हो रहा है. 27 देश एकाधिकारवादी व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं जबकि 13 लोकतंत्र की ओर. रिपोर्ट कहती है कि जिन देशों में लोकतंत्र नहीं हैं उनमें से लगभग आधे से ज्यादा दमनकारी हो गए हैं. रिपोर्ट में अफगानिस्तान, बेलारूस, कंबोडिया, कोमोरोस और निकारागुआ का नाम लेकर कहा गया है कि यहां स्थिति में भारी गिरावट आई है. रिपोर्ट कहती है कि एशिया में 54 प्रतिशत लोग लोकतंत्र में रहते हैं और तानाशाही व्यवस्था मजबूत हो रही हैं. अफ्रीका की यह कहते हुए तारीफ की गई है कि मुश्किल परिस्थितियों और अस्थिरता के खतरों के बावजूद वहां मुकाबला किया जा रहा है. अरब क्रांति को एक दशक गुजर जाने के बाद भी मध्य पूर्व ‘दुनिया का सबसे ज्यादा एकाधिकारवादी क्षेत्र बना हुआ है जहां सिर्फ तीन देशों में लोकतंत्र है. इराक, इस्राएल और लेबनान. यूरोप के कुल देशों में से लगभग आधे यानी 17 ऐसे हैं जहां पिछले पांच साल में लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आई है.