पंडित गणेश शंकर उपाध्याय ने कहा कि देखिए एक पक्ष के लोग परिसर में मिले वस्तु को शिवलिंग बता रहे हैं. देखने में उसकी आकृति शिवलिंग जैसी प्रतीत हो रही है. हम लोगों को जो जानकारी है, उसके अनुसार वह फव्वारा था. उन्होंने कहा कि हम लोगों ने उस फव्वारे को बचपन से देखा है. पिछले 50 साल से देख भी रहे हैं.
वाराणसी : ज्ञानवापी मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. एक पक्ष ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग होने का दावा कर रहा है जबकि दूसरा पक्ष उसे फव्वारा बता रहा है. इस मामले में तब नया मोड़ आया जब कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने कहा कि सर्वे में हमने काला पत्थर देखा. हमने अपनी रिपोर्ट में भी यही लिखा है. वादी पक्ष की ओर से इसे शिवलिंग बताया गया. प्रतिवादी पक्ष ने इसे फव्वारा बताया. अब काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित काशी करवत मंदिर के महंत पंडित गणेश शंकर उपाध्याय ने कुछ और ही दावा किया है.
पंडित गणेश शंकर उपाध्याय का दावा है कि ज्ञानवापी में शिवलिंग नहीं है, बल्कि फव्वारा ही है. जैसा कि वह पिछले 50 सालों से देखते आ रहे हैं. साथ में गणेश शंकर उपाध्याय यह भी दावा करते हैं कि उन्होंने फव्वारे को चलते हुए कभी नहीं देखा. गणेश शंकर उपाध्याय के इस बयान के सामने आने के बाद आजतक ने उनसे खास बातचीत की.
पंडित गणेश शंकर उपाध्याय ने बातचीत के दौरान कहा कि देखिए एक पक्ष के लोग परिसर में मिले वस्तु को शिवलिंग बता रहे हैं. देखने में उसकी आकृति शिवलिंग जैसी प्रतीत हो रही है. हम लोगों को जो जानकारी है, उसके अनुसार वह फव्वारा था. उन्होंने कहा कि हम लोगों ने उस फव्वारे को बचपन से देखा है. पिछले 50 साल से देख भी रहे हैं.
महंत ने बताया कि हम लोग सैंकड़ों बार उस आकृति के पास गए हैं. घंटों वहां समय व्यतीत किया है. उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी परिसर के मौलवी या सेवादार से हमारी बातें भी होती थीं. वहां का स्ट्रक्चर काफी पहले का है. हम लोगों ने पूछा भी था. तो यह कहा गया कि यह फव्वारा है. लेकिन कभी उसको चलते हुए हम लोगों ने नहीं देखा. महंत ने कहा कि हम लोगों ने इस बारे में पूछा भी कि ये कब चलता है, उसका फव्वारा देखने में कैसा लगता है. इस पर सेवादार या फिर मौलवी बताते थे कि मुगल काल का फव्वारा है.
गणेश शंकर उपाध्याय ने आगे बताया कि मीडिया में जो वीडियो दिखाया जा रहा है, जिसमें वहां कुछ सफाई कर्मी दिख रहे हैं. इस स्थिति में जो ऊपर से फोटो लिया गया है जिससे नीचे दिख रही वस्तु का आकृति शिवलिंग जैसी दिख रही है. उन्होंने बताया कि शिवलिंग के बारे में हम लोगों को कोई जानकारी नहीं है कि उस स्थान पर कभी शिवलिंग था. अभी जो फोटो आई है उसे तो देखने में प्रतीत होता है कि शिवलिंग की आकृति है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि शिवलिंग को वुजू के स्थान पर रख दिया गया है. लोग कहते हैं कि मुस्लिम वहां कुल्ला करते हैं, हाथ धोते हैं. महंत ने कहा कि कुल्ला करने का स्थान बाहर है.
महंत गणेश शंकर ये भी दावा करते हैं कि मस्जिद के सामने जो नंदी है उससे मंदिर का कोई लेना देना नहीं है. उनके मुताबिक उनका महंत आवास मस्जिद के सामने ही पड़ता है. हमारे महंत आवास का पिछला हिस्सा मंदिर के सामने पड़ता है. महंत आवास और मस्जिद के बीच में 10 मीटर से ज्यादा की दूरी नहीं है. पहले इस तरह का कोई विवाद नहीं था. बहुत ही भाईचारा था. हम लोग मौलवी जी के यहां जाते और मौलवी हमारे यहां आते थे. वो लोग घंटों हमारे यहां बैठते थे. हमारे पूर्व के दादा गुरु के साथ उनका बैठना होता था. बातचीत भी होती थी.
बताते चले कि ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट तैयार करने वाले असिस्टेंट कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने वजुखाने में मिले शिवलिंग पर भी बड़ी बात कहीं है. विशाल सिंह ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए दावा किया है कि हमें जो दिखा, वही रिपोर्ट में लिखा है. विशाल सिंह ने कहा कि हमने अपनी रिपोर्ट में शिवलिंग नहीं लिखा है.
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